Book Title: Aradhak Banvano Marg
Author(s): Bhadrankarvijay
Publisher: Bhadrankarvijay

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Page 53
________________ अनाहतनु स्वरूप ५३ प्रमाणे परमात्मा साथे अभेद भावने पामेलो ध्यानी आत्मा सर्व पापोनो नाश करी परमात्मपणाने प्राप्त करे छ। - अनाहतनापूर ___ अनाहतनी पूर्वावस्था अनाहतनी पूर्व अवस्थामा संभेदप्रणिधान द्वारा प्रगट थतां अभेदप्रणिधानमय ध्यानन स्वरूप विविध ग्रंथोमां या प्रमाणे बताव्यु छ । ध्याता प्रथम अरिहंत परमात्मानी मानसिक भावपूजा उत्तमोत्तम द्रव्योनी कल्पना वडे करे छ । (जेमके समतारूपी स्वच्छ गंगाजल वडे प्रभुने स्नान करावी भक्तिरूप केशर वडे अर्चन करी, शुद्धभावरूप पुष्पो चडाववा विगेरे) त्यार पछी परम प्रभुना अनंत गुणोनु स्मरण करी प्रभु साथे तन्मय बनवा माटे भावना करे छे, के मारा आत्मामां पण तेवा गुणो तिरोभावे (प्रच्छन्नपणे Potentially) रहेलां छे, कारण के सर्व जीवो सत्ताए सिद्ध समान छ । सर्व जीवोनी जाति एक छे । (एगे पाया) आत्मानु सहज निर्मल स्वरूप स्फटिक रत्न समान छ । (जेम निर्मलतारे रत्न स्फटिक तणी, तेम ए जीव स्वभाव ;) । - आ प्रमाणे अनेक स्याद्वाद सिद्धान्तनां सापेक्ष वचनो द्वारा विचार करतां तेने समजाय छे, के परमात्मा अने मारा आत्मानी कथंचित् समानता छ, माटे अमे बने एकज छीए । ते परमात्मा ते ज हुँ छु, (सोऽहं) । आ रीते द्विधाभावने (भेदभावने) दूर करी 'पोताना आत्माने पण परमात्म स्वरूपे चितवे छे । अने समरस भावमा विशेष उल्लसित थई तेमां मग्न बनी विचार छे के, खरेखर आजे हुं आनंदना महान साम्राज्यने पाम्यो छु अने सूर्य समान केवलज्ञानने मेलवी संसार समुद्रथी पार थई परमात्म स्वरूप बन्यो छु' सर्व लोकनां अग्रभागे रहेलो · · हुं तो निरंजन देव छु। परमात्म दर्शन- लक्षण ज्यारे ऊपर जणाव्या प्रमाणे निरंजन देवना दर्शन थाय छे, त्यारे साधक (ध्याता) ना नयनोमांथी आनंदनो अश्रुप्रवाह वहेवा मांडे छ, समग्र शरीर रोमांचित बनी जाय छ । १. द्वाभ्यामेकं विधायाथ, शुभध्यानेन योगवित् । परमात्मस्वरूपं तं, स्वमात्मानं विचिन्तयेत् ॥४७॥ २. सुलब्धानंदसाम्राज्यः, केवल-ज्ञान-भास्करः । परमात्म-स्वरूपोऽहं, जातस्त्यक्तभवार्णवः ॥४८॥ ३. अहं निरंजनो देवः, सर्वलोकाग्रमाश्रितः । इति ध्यानं सदाध्यायेदक्षयस्थानकारणं ॥४६॥ -योग प्रदीप

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