Book Title: Aradhak Banvano Marg
Author(s): Bhadrankarvijay
Publisher: Bhadrankarvijay

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Page 42
________________ श्री कापरड़ा स्वर्ण जयन्ती महोत्सव ग्रन्थ अनाहत शंछे ? अनाहतनु आलेखन श्रीसिद्धचक्र महायंत्रना आराध्य विभागमां (जे अत्यंत महत्त्वनो होवाथी अमृतमंडल कहेवाय छे) थयेल होवाथी ते पण अरिहंत पदोनी जेम पूजनीय छ । जो 'अनाहत' कोई अधिष्ठायक देव होत, तो तेनुपूजन तथा आलेखन अधिष्ठायक देवोना वलयमां थQ जोईतु हतु, पण ते रीते थयेल नथी माटे 'अनाहत' ए श्रुतज्ञान अने तपरूप छे, एम मानवामां कोईपण प्रकारनो विरोध जणातो नथी। नीचेनी बाबतोथी या वात वधारे स्पष्ट थशे। १. यंत्रमा 'अनाहत' सूचक जे प्राकृतिनु आलेखन छे, ए श्रुतज्ञान छ । २. मंत्र ('ह') रूपे 'अनाहत' नु स्मरण तथा ध्यान ए स्वाध्याय अने ध्यानरूप तप छ । अनक्षरताने प्राप्त थयेलु 'अनाहत' नादनु ध्यान ए निरालंबन ध्यानरूप छे, माटे ते अभ्यंतर तप अने भाव चारित्ररूप छ । प्रा प्रमाणे सूक्ष्म बुद्धिथी विचारणा करतां समजी शकाय छे के 'अनाहत' ए ज्ञान अने क्रियारूप छे, माटे मुमुक्षु आत्माने ते परम आराध्य छ । ४. 'अह" ए समग्र जिनशासनना सारभूत नवपदोनु बीज अने नवकार महामंत्रनां प्रथम पदमा रहेला अरिहंत परमात्मानो वाचक छ । वळी स्वरो अंने व्यंजनो ए समग्र श्रुतसागरनां मूळ छे । तेमनी साथे ज 'अनाहत' नु आलेखन थयु छे, ते तेना महत्त्वने बताववा माटे ज छ। आ महान रहस्य साधक प्रात्माने अनुभवथी ज जणाशे। मंत्र, ध्यान अने योगनी दृष्टिए अनाहत कलिकालसर्वज्ञ श्री हेमचंद्राचार्य भगवाने योगशास्त्रमा 'अनाहत' नादनु स्वरूप आ प्रमाणे बताव्यु छः-'अहं' नां ध्यान पछी तेमांथी रेफ नाद-बिन्दु अने कला रहित उज्ज्वल वर्णवाला 'ह' नु ध्यान करवू, ते सिद्ध थया पछी अर्धकलाना आकारने पामेलो अने अनक्षरताने प्राप्त थयेलो 'ह' अक्षर चितववो, सूर्य समान तेजस्वी अने सूक्ष्म एवा ते अनाहत देवनु एकाग्रताथी ध्यान कर जोइए। अनुक्रमे सतत ध्यानाभ्यासथी सूक्ष्म-सूक्ष्मस्वरूप चितवतां मात्र वालनां अग्रभाग जेटलु सूक्ष्म 'अनाहत' नु ध्यान करवु । अने ते पछी “समग्र विश्व जाणे ज्योतिर्मय छे", एम विचारवु। ____ा प्रमाणे आकारने छोडी निराकारनु आलंबन लेवु, पछी ते लक्ष्यमांथी पण मनने धीमे धीमे खसेडी अलक्ष्यमां स्थिर करवू । अलक्ष्यमा मननी स्थिरता थतांनी साथे ज अंतरमां इन्द्रियातीत (इन्द्रियने अगोचर), अलौकिक एवी अक्षय ज्योति प्रगटे छे अने ते वखते

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