Book Title: Aradhak Banvano Marg
Author(s): Bhadrankarvijay
Publisher: Bhadrankarvijay

View full book text
Previous | Next

Page 46
________________ श्री कापरड़ा स्वर्ण जयन्ती महोत्सव अन्य ___ॐ ह्री अह" ए सिद्धचक्रनो मूल मंत्र छे, जो के श्रीसिद्धचक्रजीना मंडलना मध्यस्थानमां श्री अरिहंत परमात्मानी मूर्तिनी स्थापना होय छे, परंतु अहीं यंत्रमा मूर्तिने बदले ऽहं नुं आलेखन करवानुं कारण ए छे, के ध्यान दशामां मूर्ति करतां अक्षरनुं आलम्बन सूक्ष्म मानवामां आव्यु छे, बीजु हए अरिहंतनु मंत्रात्मक शरीर छे, तेथी ते वखते ध्यान दशामां तेनुं आलंबन सूक्ष्म अने अत्यंत महत्त्वभयु छ । ॐ ह्री अने स्वरादि सहित 'अहं "नां ध्याननी विशिष्ट प्रक्रिया योगशास्त्रना ८ मा प्रकाशमां (श्लोक ६-१७ सुधी) कलिकालसर्वज्ञ श्री हेमचंद्राचार्यजी ए बतादे ली छे । ते न विस्तृत विवरण वांचतां वांचको सरळताथी समजी शकशे के, प्रा यंत्रना केन्द्रस्थानमा ज ध्याननी एक स्वतंत्र महान प्रक्रिया बताववामां आवी छ । ध्यानमां प्रथम स्थूल आलंबन लीधा पछी सूक्ष्ममां आवq पडे छे । तेथी अहीं प्रथम स्वर सहित 'ॐ ह्रीं अहन ध्यान कर्या पछी मात्र 'अहD ध्यान करवानुं बतावी अते 'अह” ना ध्यानने पण ह्रस्व, दीर्घ, प्लुत, सूक्ष्म अने अतिसूक्ष्म बनावतां जई, छेवटे ए ध्यान सुसू८मध्वनिरूपे बनी जाय छे अने आ सूक्ष्म वनि ए ज अनाहतनाद कहेवाय छ । अनाहतनी स्थूल शरीर पर थती असर __ अह अने स्वरादिना ध्यानथी अनाहतनाद अनक्षरध्यानरूपे प्रगटे छे । अने ते नाद नाभि, हृदय, कंठ आदिनी ग्रंथिप्रोने भेदतो ते स्थानोमा मध्यमांथी पसार थई उर्ध्वगामी बने छ ।' ___ आज भावने श्री चिदानंदजी महाराज प्रा प्रमाणे कहे छ---"अनाहतनादनां नित्य नियमित अभ्यासद्वारा सुषुम्णा नाडिमां प्रवेश थाय छे अने वंकनालमां रहेला षट्चक्रोनुं अनुक्रमे भेदन थई दशमद्वारमां (ब्रह्मद्वारमा) पण सरळताथी प्रवेश थई शके छ ।” ___ अर्ह आदिने 'अनाहत' थी वेष्टित करवानु तात्पर्य एज जणाय छे के, अह आदिनु ध्यान ज्यां सुधी अनाहतनाद न प्रगटे त्यां सुधी नित्य नियमित धैर्यपूर्वक करतां रहे १. ग्रन्थीन् विदारयन् नाभि-कंठहृद्घटिकादिकान् । सुसूक्ष्मध्वनिना मध्य-मार्गयायी स्मरेत् ततः ।। २. सोहं सोहं सोहं सोहं सोहं सोहं रटना लगीरी, इंगला पिंगला सुषुमणा, साधके अरुणपतिथी प्रेमपगीरी; वंकनाल षड्चक्रभेदके दशमद्वार शुभ ज्योति जगीरी ।।

Loading...

Page Navigation
1 ... 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64