Book Title: Aradhak Banvano Marg
Author(s): Bhadrankarvijay
Publisher: Bhadrankarvijay

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Page 35
________________ महामंत्रनी अनुप्रेक्षा ३५ तद्गत चित्तने समय विधान, भावनी वृद्धि भय भव अति घणो जी; विस्मय पुलक प्रमोद प्रधान, लक्षण ए छे अमृत क्रिया तणो जी। भाव प्राणायामन कार्य __ नमो पद बाह्य भावनो रेचक करावे छे, प्रांतर भावनो पूरक करावे छे अने परमात्मभावनो कुंभक करावे छे, तेथी ते भाव प्राणायामनु कार्य पण करे छ । भाव प्राणायाम ज्ञानावरणनो क्षय तथा योगना उपरना ध्यानादि अंगोनी सिद्धि करावनार होवाथी मात्र शरीर स्वास्थ्यने सुधारनार द्रव्य प्राणायामनी अपेक्षाए उत्कृष्ट छ । अने तेनु पाराधन प्रथम पदना आलंबनथी सुन्दर रीते थतु होवाथी प्रथम पद अत्यंत उपादेय छ । आगमोमां नमस्कार पदनो अर्थ नीचे मुजब कह्यो छे :-- 'मणसा गुणपरिणामो, वाया गुणभासणं च पंचण्हं । कायेण संपणामो, एस पयत्थो नमुक्कारो॥' मनथी पंच परमेष्ठिना गुणोनु परिणमन, वाणीथी पंच परमेष्ठिना गुणोनु भाषण तथा कायाथी पंच परमेष्ठि भगवंतोने सम्यक् प्रणाम करवो, ते नमस्कार पदनो अर्थ छ । ____नमो पद वडे मनमां गुणोनु परिणमन थाय छे, अरिहं पद वडे गुणोनु भाषण थाय छे अने ताणं पद वडे कायानुप्रणमन थाय छ । अथवा त्रणे पदो मळीने परमेष्ठि भगवंतोना गुणोनु परिणमन, भाषण अने प्रणमन करावे छे। तेथी मन, वचन, कायाना त्रणे योगोनु सार्थक्य थाय छ । भव्यत्व परिपाकना त्रण उपाय प्रने छ अभ्यंतर तप नवकारना प्रथम पदना जाप अने ध्यान वडे भव्यत्व परिपाकना त्रणे उपायो अनुक्रमे दुष्कृतगर्दा, सुकृतानुमोदन अने शरणगमन एकी साथे सधाय छे । अने अभ्यंतर तपना छए प्रकारो, अनुक्रमे प्रायश्चित्त, विनय, वैयावच्च, स्वाध्याय, ध्यान अने कायोत्सर्गनु पण एक साथे सेवन थाय छ । ___ नमो पद दुष्कृतनी गहीं करावे छे, अरिहं पद सुकृतनी अनुमोदना करावे छे अने ताणं पद शरण गमननी क्रिया करावे छ । । .ए ज रीते नमो पद वडे पापर्नु प्रायश्चित्त अने गुणोनो विनय थाय छ । अरिहं पद

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