Book Title: Aradhak Banvano Marg
Author(s): Bhadrankarvijay
Publisher: Bhadrankarvijay
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श्री कापरड़ा स्वर्ण जयन्ती महोत्सव ग्रन्थ
बीजाथी भय उत्पन्न थाय त्यारे तेनो उपाय जेम समर्थनु शरण छे, कुष्ठादि व्याधि उत्पन्न थाय त्यारे तेनो उपाय जेम योग्य चिकित्सा छे तथा स्थावरजंगमरूप विषनो ज्यारे उपद्रव थाय त्यारे तेनु निवारण जेम देवाधिष्ठित अक्षर न्यास रूपे मंत्र छे, तेम भयमोहनीयादि पापकर्मोनो उपक्रम अर्थात् विनाश करवाना उपाय पण ३.रण वगेरेने ज कहेलां छे।
शरण्य गुरुवर्ग छे। कर्म रोगनी चिकित्सा बाह्य-आभ्यंतर तप छे अने मोह विषनो विनाश करवामां समर्थ मंत्र पांच प्रकारनो स्वाध्याय छ । पातंजल योगसूत्रमा पण काछ के :
तपःस्वाध्यायेश्वरप्रणिधानानि क्रियायोगः। . .
समाधिभावनार्थःक्लेशतनूकरणार्थ श्च । (२-१-२) तप, स्वाध्याय अने ईश्वर प्रणिधान ए क्रिया योग छ। ते वडे क्लेशनी अल्पता अने समाधिनी प्राप्ति थाय छ ।
नव कारनुप्रथम पद 'नमो अरिहंताणं ।' पद समाधिनी भावना अने अविद्यादि क्लेशोनु निवारण करेछे । नमो पद वडे कर्मरोगनी चिकित्सारूप बाह्य-आभ्यंतर तप, अरिहं पद वडे स्वाध्याय अने ताणं पद वडे ईश्वर प्रणिधान-एकाग्रचित्ते परमात्म स्मरण थाय छ । प्रथम पदना विधिपूर्वक जाप वडे श्रद्धा वधे छे, वीर्य-उत्साह वधे छे, स्मृति-समाधि अने प्रज्ञा वधे छे तथा अंते कैवल्यनी प्राप्ति थाय छ ।
अष्टांग योग
योगना आठ अंग यम, निमय, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान, अने समाधि कहेला छे । ते प्रत्येक अंगनी साधना विधियुक्त नवकार मंत्रने गणनारने सधाय छ।
नवकार मंत्रने गणनार अहिंसक बने छे, सत्यवादी थाय छे, अचौर्य, ब्रह्मचर्य अने अपरिग्रहवतनो पण आराधक थाय छ । नवकार मंत्रना आराधकने बाह्मांतर शौच अने संतोष तथा पूर्वे कह्या मुजब तप, स्वा याय अने ईश्वर प्रणिधानरूप नियमोनी साधना थाय छ । नवकार मंत्रने गणनार स्थिर सुखासननी अने बाह्याभ्यंतर प्राणायामनी साधना करनारो पण थाय छ ।
नवकारनो साधक इन्द्रियोनो प्रत्याहार, मननी धारणा अने बुद्धिनी एकाग्रतारूप ध्यान तथा अंतःकरणनी समाधिनो अनुभव करे छ ।

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