Book Title: Aradhak Banvano Marg
Author(s): Bhadrankarvijay
Publisher: Bhadrankarvijay
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___श्री कापरड़ा स्वर्ण जयन्ती महोत्सव ग्रन्थ
वडे भावथी वैयावच्च अने स्वाध्याय थाय छे अने ताणं पद वडे परमात्मानुध्यान अने देहात्मभावनु विसर्जन थाय छ ।
दुष्कृत गर्दादि वडे जीवनी मुक्तिगमन योग्यता परिपक्व थाय छे तथा प्रायश्चित्तविनयादि तप वडे क्लिष्ट कर्मोनो विगम तथा भाव निर्जरा थाय छ ।
समापत्ति, प्रापत्ति प्रने संपत्ति नवकारना प्रथम पदमां ध्याता, ध्येय अने ध्यान तथा ते त्रणेनी एकतारूप समापत्ति सधाय छे । तेथी तीर्थंकर नाम कर्मना उपार्जनरूप आपत्ति अने तेना विपाकोदयरूप संपत्तिनी पण प्राप्ति थाय छ ।
नमो ए ध्यातानी शुद्धि सूचवे छे अरिहं ए ध्येयनी शुद्धि सूचवे छे अने ताणं ए ध्याननी शुद्धि सूचवे छे । ए त्रणेनी शुद्धि वडे त्रणेनी एकतारूप समापत्ति अने तेना परिणामे आपत्ति अर्थात् तीर्थंकर नामकर्मनुं उपार्जन तथा बाह्यांतर संपत्ति प्राप्त थाय छ । ज्ञानसार ग्रन्थना ध्यानाष्टकमां का छे के :
'ध्याता ध्येयं तथाध्यानं,
त्रयं यस्यैकतां गतम् । मुनेरनन्यचित्तस्य,
तस्य दुःखं न विद्यते ॥१॥ ध्याताऽन्तरात्मा ध्येयस्तु,
परमात्मा प्रकीर्तितः । घ्यानं चैकाग्र्यसंवित्तिः,
समापत्तिस्तदेकता ॥२॥ आपत्तिश्च ततः पुण्य
तीर्थकृत् कर्मबन्धतः । तद्भावाभिमुखत्वेन,
संपत्तिश्चक्रमाद्भवेत् ॥३॥ इत्थं ध्यानफलाद्युक्तं,
विंशतिस्थानकाद्यपि। कष्टमात्रं त्वभव्याना
मपि नो दुर्लभं भवे ॥४॥ ध्याननु फळ समापत्ति, आपत्ति (तीर्थंकर नाम कर्मनु उपार्जन) अने संपत्ति (तीर्थ

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