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श्री कापरड़ा स्वर्ण जयन्ती महोत्सव प्रन्य
क्षय अने कैवल्यनी प्राप्ति थया बाद धर्मतीर्थनी स्थापना, निरन्तर धर्मोपदेशादि वडे परोपकारनी प्रवृत्ति ते कर्मकाय अवस्था छ । अने योग निरोधरूप शैलेशीकरणने तत्त्वकाय अवस्था कही छ ।
ए त्रणे अवस्थानुध्यान अने आराधन नवकारना प्रथम पदनी आराधनाथी थाय छ। तेमां नमो पद धर्मकाय अवस्थानुप्रतीक बने छ । अरिहं पद कर्मकाय अवस्थानु प्रतीक बने छे अने ताणं पद तत्त्वकाय अवस्थानु प्रतीक बने छ ।
ए रीते प्रभुनी पिंडस्थ, पदस्थ अने रूपातीत अवस्थाप्रोनी आराधनानु साधन नवकारना प्रथम पद वडे थतु होवाथी प्रथम पदनो जाप, ध्यान अने अर्थचिन्तन पुनः पुनः करवा लायक छ।
अमृत अनुष्ठान प्रथम पद वडे परमात्मानी स्तुति, परमात्मानु स्मरण अने परमात्मानुध्यान सरलताशी थइ शके छे । नामग्रहण वडे स्तुति, अर्थभावन वडे स्मरण अने एकाग्रचिन्तन बडे ध्यान थइ शके छे।
श्रद्धा वडे, मेधा वडे, धृति वडे, धारणा वडे अने अनुप्रेक्षा वडे थती प्रभुनी स्तुति, स्मृति अने ध्यान अनुक्रमे बोधि, समाधि अने सिद्धिनु कारण बने छ ।
__ 'नमो अरिहंताणं ।' ए पद योगनी इच्छा योगनीप्रवृत्ति, योगनु स्थैर्य अने योगनी सिद्धि करावे छ । एटलुज नहि पण प्रीति-भक्ति-वचन अने असंग ए चारे प्रकारना अनुष्ठाननी प्राप्ति करावी निर्विघ्नपणे जीवोने मोक्षमां लई जाय छ । ___ योगना पांच अंगो स्थान, वर्ण, अर्थ, आलंबन अने अनालंबन तथा प्रागमोक्त योगनी
आठ अवस्था तच्चित्त, तन्मन, तल्लेश्य, तदध्यवसाय, तत्तीवअध्यवसाय, तदर्थोपयुक्त, तदर्पितकरण अने तद्भावनाभावित पर्यंतनी अवस्था प्रथम पदना पालंबन वड़े सिद्ध करी शकाय छ । ___ द्रव्य क्रियाने भाव क्रिया बनावनार अने तद्हेतु अनुष्ठानने अमृत अनुष्ठान बनावनार जे चित्त वृत्तिप्रोने शास्त्रकारोए फरमावी छे, ते सौनु पाराधन प्रथम पदना अवलंबन वडे थई शके छे।
अर्थनु आलोचन, गुणनो राग अने भावनी वृद्धि ए त्रण गुण द्रव्यक्रियाने भावक्रिया बनावे छ । तथा तद्गत चित्त, शास्त्रोक्त विधान, भावनी वृद्धि, भवनो भय, विस्मय, पुलक अने प्रधान प्रमोद ते तद्हेतु अनुष्ठानने अमृत अनुष्ठान बनावे छे । ते माटे का छे के :