________________
प्राराधक बनवानो मार्ग
११
लाभरूप मोक्ष मेलववा माटे परमात्माना ध्यानमां लीन थ जोईये केमके ते ध्यान ज प्रात्माने मोक्षसुखनु असाधारण कारण होवाथी अत्यंत हित करे छ ।
स्वरूपनी अनुभूति अरिहंतादि चारनुशरण ए शुद्ध आत्मस्वरूपनु स्मरण करावनार होवाथी अने तेना ध्यानमां ज तल्लीन करनार होवाथी तत्त्वतः शुद्ध आत्मस्वरूपनुज शरण छ । अने शुद्ध प्रात्मस्वरूपनु शरण एज परम समाधिने अर्पनार होवाथी परम आदेय छ । ते माटेनी योग्यता दुष्कृत गर्दा अने सुकृतानुमोदनथी प्राप्त थाय छे तेथी दुष्कृत गर्दा अने सुकृतानुमोदना पण उपादेय छ ।
दुष्कृत गर्दा अने सुकृतानुमोदना सहित अरिहंतादि चारनु शरण ए भव्यत्व परिपाकना उपाय तरीके शास्त्रमा वर्णवेलुछे, ते युक्ति अने अनुभवथी पण गम्य छ। __ दुष्कृतगर्दा अने सुकृतानुमोदन परार्थवृत्ति अने कृतज्ञता भावने उत्तेजित करनार होवाथी अंतःकरणनी शुद्धता करे छे, ए युक्ति छ अने शुद्ध अन्तःकरणमां ज परमात्म स्वरूपनु प्रतिबिंब पडी शके छे, एवो सर्व योगी पुरुषोनो छ पण अनुभव छ ।
... समुद्र के सरोवर ज्यारे निस्तरंग बने छे त्यारे ज तेमां आकाशादिप्रतिबिंब पड़ी शके छे । तेनी जेम अन्तःकरणरूपी समुद्र के सरोवर ज्यारे संकल्प विकल्परूपी तरंगोथी रहित बने छे त्यारे ज तेमां अरिहंतादि चारनुं अने शुद्धात्मानुं प्रतिबिंब पड़े छ । ___ अंतःकरणने निस्तरंग अने निर्विकल्प बनावनार दुष्कृतगर्दा अने सुकृतानुमोदनना शुभ परिणाम के अने तेमां शुद्धात्मानुं प्रतिबिंब पाड़नार अरिहंतादि चारनुं स्मरण अने शरण छ। . स्मरण ध्यानादि वडे थाय छ अने शरणगमन आज्ञापालनाना अध्यवसाय वडे थाय छ । आज्ञापालननो अध्यवसाय निर्विकल्प चिन्मात्र समाधिने आपनारो छ । अने निर्विकल्प चिन्मात्र समाधि अर्थात् शुद्धात्मानी साथे एकतानी अनुभूतिने अंग्रेजीमां Self Identification (सेल्फ आइडेन्टीफिकेशन) स्वरूपनी अनुभूति पण कहे छ ।
ए रीते परंपराए दुष्कृत गर्दा अने सुकृतानुमोदननुं अने साक्षात् श्री अरिहंतादि चारना शरणगमनन फल होवाथी ते त्रणेने जीव तथाभब्यत्व, मुक्तिगमन योग्यत्व पकावनार तरीके शास्त्रमा अोलखाववामां आवेल छ, ते यथार्थ छ ।
दुर्लभ एवा मानव जीवनमां ते त्रणे साधनोनो भव्यत्व पकाववाना उपाय तरीके आश्रय लेवो ए प्रत्येक मुमुक्षु आत्मानु परम कर्त्तव्य छ ।