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श्री कापरड़ा स्वर्ण जयन्ती महोत्सव ग्रन्थ
निर्वेद प्रने संवेग रस नवकारमा निर्वेद अने संवेग रसनु पोषण थाय छ । निगोददिमां रहेला जीवोना दुःखनो विचार करीने चित्तमां संसार प्रत्य उद्वेग धारण करवो ते निर्वेद रस छे अने सिद्धिगतिमां रहेला सिद्ध भगवंतादिना सुखने जाईने आनंदनो अनुभव थवो ते संवेगरस छ। दुःखी जीवोनी दया अने सुखी जीवोना प्रमोदवडे राग, द्वेष अने मोह ए त्रणे दोषोनो निग्रह थाय छ।
बधा दुःखी आत्माना दुःख करतां नरकना नारकीनु दुःख वधी जाय छे, तेथी पण अधिक दुःख निगोदमां रहेलुछे । बधा दुःखी आत्माअाना सुख करतां अनुत्तरना देवोनुं सुख चड़ी जाय छे तेथी पण एक सिद्धना आत्मानु सुख अनंत गुण अधिक छ । एक निगोदनो जीव जे दुःख भोगवे छे, ते दुःखनी आगळ निगोद सिवायना सर्व दुःखी जीवोनु दुःख एकत्र थाय तो पण कांई वीसातमां नथी । एक सिद्धना जोवनु सुख देव अने मनुष्यना त्रणे काळना सुखनो अनंतवार गुणाकार के वर्ग करवामां आवे तो पण तेनी सरखामणीमां घणु वधारे छे ।
पोताथी अधिक दुःखीना दुःखने दूर करवानी बुद्धिरूप दयाना परिणामथी पोतानु दुःख अने तेथी आवेली दीनता नष्ट थाय छे । पोताथी अधिक सुखीनु सुख जोइने तेमां हर्ष के प्रमोदभाव धारण करवाथी पोताना सुखनो मिथ्या गर्व के दर्प गळी जाय छ । ___ दीनता के दर्प, भय के द्वेष, खेद के उद्वेग आदि चित्तना दोषोनु निवारण करवा माटे गुणाधिकनी भक्ति अने दुःखाधिकनी दया ए सरळ अने सर्वोत्तम उपाय छे, तेने ज शास्त्रनी परिभाषामां संवेग-निर्वेद गणाव्या छ । नवकारमां ते बंने प्रकारना रसो पोषाता होवाथी जीवनी मानसिक अशांति अने असमाधि तेना स्मरणथी दूर थाय छे। ।
सेवन कारण पहेली भूमिका-प्रभय प्रद्वष प्रखेव नमस्कार मंत्रनी साधनाथी शुद्ध प्रात्मानो साथे कथंचित् अभेदनी साधना थाय छ । ज्यां अभेद त्यां अभय ए नियम छ । भेदथी भय अने अभेदथी अभय अनभव सिद्ध छ । भय ए चित्तनी चंचलतारूप बहिरात्मदशारूप आत्मानो परिणाम छे । अभेदना भावनथी ते चंचलता दोष नाश पामे छे अने अंतरात्मदशारूप निश्चलता गुण उत्पन्न थाय छ । __अभेदना भावनथी अभयनी जेम अद्वेष पण सधाय छ । द्वेष अरोचक भावरूप छ, ते अभेदना भावनथी चाल्यो जाय छ । अभेदना भावनथी जेम भय अने द्वष टळी जाय छ, तेम खेद पण नाश पामे छ । खेद ए प्रवृत्तिमां थाक रूप छे । ज्यां भेद त्यां खेद अने ज्यां अभेद त्यां अखेद आपोआप आवे छे । नमस्कार मंत्रना प्रभावे जेम अभेद बुद्धि दृढ थती जाय छ तमे भय, द्वेष अने खदे दोष चाल्या जाय छ अने तेना स्थाने अभय, अद्वेष अने अखेद गुण आवे छ ।