Book Title: Aradhak Banvano Marg
Author(s): Bhadrankarvijay
Publisher: Bhadrankarvijay

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Page 24
________________ श्री कापरड़ा स्वर्ण जयन्ती महोत्सव ग्रन्थ करणो शुद्धिने अनुभवे छे । अने आध्यात्मिक आनन्दनी अनुभूति पर्यंत जीवात्माने लई जाय छ । मंत्रना शब्दो वडे मन-बुद्धि आदिनु प्राणतत्त्वमां रूपांतर थाय छ। अने प्राण तत्त्व सीधेसीधी आत्मानुभूति करावे छ । प्राणतत्त्व आत्माना वीर्यगुणनी साथे निकटनो संबंध धरावे छ । __शब्दना बे अर्थ होय छे, एक वाच्यार्थ अने बीजो लक्ष्यार्थ । वाच्यार्थनो संबंध शब्द कोष साथे छे । लक्ष्यार्थनो संबंध साक्षात् जीवन साथे छे । पंचमंगलनो लक्ष्यार्थ प्राण तत्त्वनी शुद्धि द्वारा साक्षात् जीवनशुद्धि करावनारो थाय छ । . कर्मनो निरनुबंध क्षय चित्तमां अरति, उद्वेग, कंटाळो जणाय त्यारे जाणवू के मोहनीय कर्मनो उदय अने तेनी साथे अशुभ कर्मनो विपाक जाग्यो छे । तेने टाळवानो उपाय शास्त्रकारो ए पंच मंगल ने कह्यो छे । एकाग्रतापूर्वक पंच मंगलनो जाप शांत चित्ते करवाथी अशुभ कर्म टळी जई शुभ बनी जाय छे । तेनो अर्थ ए छे के उदयमां आवेलु कर्म अवश्य भोगववु पडे छे, तेने ज्ञानी ज्ञानथी, समताथी अने अज्ञानी अज्ञानथी, आर्तरौद्र ध्यानथी वेदे छे । ज्ञानीने नवीन बंध थतो नथी, अज्ञानीने थाय छ । सत्तामांथी एटले संचितमांथी उदयमां आववा सन्मुख थयेला कर्ममां वर्तमानना शुभाशुभ भावथी फेरफार थई शके छे । पंचमंगलना जाप अने स्मरणमां ज्ञानीना ज्ञान गुणनी, साधुना संयम गुणनी, तपस्वीअोना तप गुणनी अनुमोदना थाय छ । अने ते ते गुणोनु मानसिक आसेवन थाय छे, तेथी जे शुभ भाव जागे छे, तेनाथी कर्मनी स्थिति अने अशुभ रस घटी जाय छे अने शुभ रस वधी जाय छ । तथा उदयागत कर्म समताभावे वेदन थई जतु होवाथी तेनो निरनुबंध क्षय थई जाय छ । पंच मंगलथी भावधर्मन आराधन थाय छे केमके तेमां रत्नत्रयधरोने विष भक्ति प्रकटे छे । तेमनी आज्ञा पालन करवानो उत्साह जागे छ । सर्वना शुभनी ज एक चिन्तानो भाव प्रगटे छ अने अशुभ संसार प्रत्ये निवेदनी भावना जन्मे छ । का छ के 'रत्नत्रयधरेष्वेका, भक्स्तित्कार्यकर्म च । शुभैकचिन्तासंसार-जुगुप्सा चेति भावना ॥ श्रा भाव धर्म दान, शील, तप आदि द्रव्य धर्मनी वृद्धि करे छे । अने ते द्रव्य धर्मनी वृद्धि पाछी भाव धर्मनी वृद्धि करे छे । एम उत्तरोत्तर द्रव्य-भाव धर्मनी वृद्धि तेनी पराकाष्ठाने पामी सर्व कर्म रहित मोक्षy कारण बने छ । नवकार मंत्रना पदोमां गुण-गुणिनी उपासना उपरांत शब्द द्वारा शुभ स्पंदनो उत्पन्न

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