Book Title: Aradhak Banvano Marg
Author(s): Bhadrankarvijay
Publisher: Bhadrankarvijay

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Page 31
________________ महामंत्री अनुप्रेक्षा व्यवहारथी संसारी जीव मात्र कर्मबद्ध छे अने ते कारणे जन्म मरण कर्या करे छ। निश्चयनयथी जीव मात्र अनंत चतुष्टयवाम छे, प्रष्ट कर्मथी भिन्न छ, एवी श्रद्धा, ज्ञान अने तदनुरूप वर्तन थाय छे, त्यारे अहं पोते ज मह रूप बनी जन्म मरणरूप चार गतिनो अंत करे छ । नवकारना प्रथम पदनुं पाराधन, चिन्तन अने मनन जीवने मिथ्या रत्नत्र्यथी मुक्त करी सम्यग् रत्नत्रयथी युक्त करे छे, अने परिणामे अनंत चतुष्टयथी युक्त करी गति चतुष्टयथी मुक्त बनावे छ । नवकारर्नु प्रथमपद पररूपेण नास्तित्वरूप शून्यतानुं बोधक छे, स्वरूपेण अस्तित्वरूप पूर्णतानुं बोधक छे अने उभयरूपे युगपद अवाच्यत्वरूप स्वसंवेद्यत्वनुं बोधक छ । तेथी शून्यता, पूर्णता अने एकतानी भावना करावी जीवने भक्ति, वैराग्य अने ज्ञानथीं परिपूर्ण बनावे छ । पूर्णतानो बोध भवित प्रेरक छे, शून्यतानो बोध वैराग्य प्रेरक छे अने एकतानो बोध तत्त्वज्ञाननो प्रेरक छ । चतुर्थ गुणस्थानके भक्तिनी प्रधानता, छट्ठा गुणस्थानके वैराग्यनी प्रधानता अने ते उपरना गुणस्थानकोए तत्त्वज्ञाननी मुख्यता मानेली छ । प्रथम पद पा रीते सर्व गुणस्थानकोने योग्य साधनानी सामग्री पूरी पाडे छे, तेथी तेने सिद्धान्तना सार रूप कहेल छ । इच्छायोग-शास्त्रयोग-सामर्थ्ययोग नवकारना प्रथम पदमां इच्छायोग, शास्त्रयोग अने सामर्थ्ययोग ए त्रणे प्रकारना योगनो समावेश थयेलो छ। नमो पद इच्छिायोगनु प्रतीक छ । अरिहं पद शास्त्रयोगर्नु प्रतीक छे अने ताणं पद सामर्थ्ययोगर्नु प्रतीक छ। इच्छायोग प्रमादी एवा ज्ञानीनी विकल क्रिया छ । शास्त्रयोग अप्रमादी एवा ज्ञानीनी अविकल क्रिया छे अने सामर्थ्ययोग ए एथी पण विशेष अप्रमत्तभावने धारण करनारनी शास्त्रातिक्रान्त प्रवृत्ति छ । 'नमो' पद शास्त्रोक्त क्रियानी इच्छा दर्शावे छे तेथी प्रार्थना स्वरूप छ । 'अरिहं' पद शास्त्रोक्त क्रियान स्वरूप बतावे छे तेथी स्तुति स्वरूप छे अने 'ताणं' पद शास्त्रोक्त मार्गे चालीने तेनुं पूर्ण फळ बतावे छे तेथी उपासना स्वरूप छ । नवकारना प्रथम पदमां आ रीते सदनुष्ठाननी प्रार्थनारूप इच्छायोग, सदनुष्ठाननी स्तुतिरूप शास्त्रयोग अने सदनुष्ठाननी उपासनारूप सामर्थ्ययोग गुंथायेलो होवाथी त्रणे प्रकारना योगीअोने उत्तम पालंबन पूरूं पाडे छ ।

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