Book Title: Aradhak Banvano Marg
Author(s): Bhadrankarvijay
Publisher: Bhadrankarvijay

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Page 30
________________ श्री कापराव महोत्सव अन्य भने तामं पद बड़े प्रात्मानुपरमात्म स्वरूपे भाषन अने तेना परिणामे रक्षण बाय के त्रणे भावोनुपृथक् पृथग् वर्णन करतां तेत्रोधी फरमावे के के: 'मातम बुद्ध हो कायादिक ग्रह्यो, बहिरातम अघरूप, सुज्ञानी; कायादिकतो हो साखीधर रहो, अंतर प्राप्तमरूपा, सुज्ञानी, सुमति चरण । ज्ञानानंदे हो पूरण पाक्नो करजित सकल उपाधि, सुज्ञानी; अतीन्द्रिय गुण गण मणि आमरू, ईम परमातम साध, सुज्ञानी, सुमति चरण । काया, वचन, मन, आदिने एकांत आत्मबुद्धिथी ग्रहण करनार बहिरात्मभाव छे, अने ते पापरूप छे । ते ज कायादिनो साक्षी भाव अंतरात्म स्वरूप छ । परमात्मस्वरूप ज्ञानानंदथी पूर्ण छे, सर्व बाह्य उपाधिथी रहित छे, अतीन्द्रिय गुण समूहरूप मणियोनी खाण छे, तेनी साधना करवी जोईए। नवकारना प्रथम पदनी साधना बहिरात्मभावने छोडावी, अंतरात्मभावमां स्थिर करी, परमात्मभावनी भावना करावे छे, तेथी पुनः पुनः करवा योग्य छ । कंचं छे के: 'बाह्यात्मनमपास्य, प्रसत्तिभाजाऽन्नरात्मना योगी। सततं परमात्मनं, विचिन्तयेत्तन्मयत्वाय ॥ -योगशास्त्र, प्र० १२ श्लो०६ बाह्यात्मभावनो त्याग करी, प्रसन्न एवा अन्तरात्मभाववडे, परमात्मतत्त्नु चिंतन, तन्मय थवा माटे योगी निरन्तर करे। प्रथम पदनो जाप अने तेना अर्थनु चिन्तन योगीप्रोनी आ भावनानो अभ्यास करावनार थाय छ । गति चतुष्टयथी मुक्ति अने अनंत चतुष्टयनी प्राप्ति नवकारनु प्रथम पद 'नमो' सद्विचारनु प्रेरक छ । अरिहं पद सद्विवेकनु प्रेरक छ । अने ताणं पद सद्वर्तननुप्रेरक छ । सद्विचार, सद्विवेक अने सद्वर्तन ए ज निश्चयथी रत्नत्रयी छ । व्यक्तिनिष्ठ अहं मिथ्यादर्शन, मिथ्याज्ञान अने मिथ्याचारित्रथी युक्त छ । ते ज अहं ज्यारे समष्टिनिष्ठ बने छे, त्यारे सम्यग्-दर्शन-ज्ञान चारित्र युक्त बने छ। .

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