Book Title: Aradhak Banvano Marg
Author(s): Bhadrankarvijay
Publisher: Bhadrankarvijay

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Page 27
________________ यथार्थ होवा छतां धर्तन दूषित थ वार्मो कारण प्रमीशीलता, दुःसँग अर्ने अनादि असदभ्यास छ । ते कारणे रागादि दोषोनो निग्रह करवा माटें एके बाजु यथार्थ ज्ञान अने बीजी बाजु यथार्थ वर्तननो अभ्यास जरूरी छ । ज्ञान मनमां, स्तुति-स्तव वचनमा प्रने प्रवृत्ति काया. थाय छै । कफ दोष कायानी क्रियानी साथे संबंध राखे छे। पित्त दोष बैंचननी क्रियानी साथे संबंघ राखे छे अने वात दोष मननी क्रियानी साथे संबंध राखे छ । राग, द्वेष अने मौह ए त्रण दोषो पण अनुक्रमे मन, वचन कायानी क्रियानी साथे संबध धरावे छे । रागनी अभिव्यक्ति मुख्यत्वे मनमां, द्वेषनी अभिव्यक्ति मुख्यत्वे वचनमां अने मोहनी अभिव्यक्ति मुख्यत्वे क्रिया द्वारा थाय छ। ___ पंचमंगल ज्ञान, दर्शन चारित्र स्वरूप होकाथी तथा तेमां मन, वचन, काया त्रणेनी प्रशस्त क्रिया होवाथी आत्माने दूषित करनार राग, द्वष अने मोह तथा शरीरने दूषित करनार वात, पित्त अने कफनो निग्रह करवानी शक्ति तेमां रहेली छे । तेथी श्री पंचमंगलनुं अाराधन आत्मानुं भावस्वास्थ्य अने देहर्नु द्रव्यस्वास्थ्य उभयने आपवानी एक साथे शवित धरावे छ । प्रथम पदनो अर्थ भावनापूर्वक जाप समग्र नवकारनी जेम नवकारना प्रथम पदना जापथी मन-वचन-कायाना योगो अने प्रात्माना ज्ञान-दर्शन-चारित्र गुणोनी शुद्धि थाय छ । देहनी त्रण धातुओ वात, पित्त अने कफ तथा प्रात्माना त्रण दोषो राग-द्वेष-अने मोह अनुकमे, त्रण योगनी अने त्रण गुणनी शुद्धि वडे दूर थाय छ। 'नमो' पद वडे मनोयोग अने ज्ञानगुणनी, 'अरिहं' पद बड़े वचन योग अने दर्शनगुणनी तथा 'ताणं' पद वडे काययोग अने चारित्रगुणनी शुद्धि थाय छे । त्रण योगनी शुद्धि वडे वात, पित्त अने कफना विकरो तथा त्रण गुणनी शुद्धि वडे राग, द्वेष अने मोहना दोषो नाश पामे छे । तेथी श्रीनवकार मंत्रना प्रथम पदना जाप वडे शरीर अने आत्मा ऊभयनी शुद्धि थाय छ। शुभ मनोयोगथी वात विकार जाय छे, शुभ वचनयोगथी पित्त विकार जाय छे । अने शुभ काययोगथी कफ विकार जाय छ। सम्यग् ज्ञान वडे राग दोष जाय छे, सम्यग् दर्शन वडे द्वेष दोष जाय छे अने सम्यक् चारित्र वडे मोह दोष जाय छ । मननी शुद्धि 'नमो' पद अने तेना अर्थनी भावना वडे थाय छ । वचननी शुद्धि 'अरिहं' पद अने तेना अर्थनी भावना वडे थाय छे । कायानी शुद्धि 'ताणं' पद अने तेना अर्थनी भावना वडे थाय छ।

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