Book Title: Aradhak Banvano Marg
Author(s): Bhadrankarvijay
Publisher: Bhadrankarvijay

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Page 20
________________ श्री कापरड़ा स्वर्ण जयन्ती महोत्सव ग्रन्थ श्रीनमस्कार महामंत्रमा त्रणे काळना अने सर्व स्थळोना महापुरूषो के जेमणे मद, मान, माया, लोभ, क्रोध, काम अने मोह आदि दोषो उपर विजय मेळव्यो छे, ते सर्वनु ध्यान यतु होवाथी ध्याताना ते ते दोषो काळक्रमे समूलपणे विनश्वर थाय छ । ए रीते नमस्कार मंत्र दोषोनी प्रतिपक्ष भावनारूप बनीने गुणकारी थाय छ । ए ज अर्थने जणावनार नीचेनो एक श्लोक अने तेनी भावना नमस्कारनीज अर्थ भावना स्वरूप बनी जाय छ । "धन्यास्ते वन्दनीयास्ते, तैस्त्रैलोक्यं पवित्रितम् । यैरेव भुवन-क्लेशी, काममल्लो विनिजितः ॥१॥" –धर्मबिन्दु टीका ते पुरूषो धन्य छे, ते पुरुषो वंदनीय छ अने ते पुरुषोए त्रणे लोकने पवित्र कर्या छ, के जेओए कामरूपी मल्लने जीती लीधो छ । ए ज रीते क्रोधरूपी मल्ल, लोभरूपी मल्ल, मोहरूपी मल्ल, मानरूपी मल्ल, अने बीजा पण आकरा दोषरूपी मल्लो जेणे जेणे जीती लीधा छे, ते ते पुरुषो पण धन्य, वंद्य अने त्रैलोक्यपूज्य छे, एवी भावना करी शकाय छे । अने ते बधी भावनामो श्रीनमस्कार मंत्रना स्मरण समये थई शके छे । ___ईष्टनो प्रसाद अने पूर्णतानो प्राप्ति मंत्र जपमां नित्य नवो अर्थ प्राप्त थाय छे शब्द तेना ते ज रहे छे अने अर्थ नित्य नूतन प्राप्त थाय छे, धान्य तेनु ते छे, छतां नित्य तेमां नवो स्वाद क्षुधाना प्रमाणमां अनुभवाय छे। तेज वात तृषातुरने जळमां अने प्राण धारण करनार जीवने पवनमां अनुभवाय छे । तृषा तथा क्षुधा ने शमाववानी अने प्राणने टकाववानी ताकात ज्यांसुधी जळ, अन्न अने पवनमा रहेली छे, त्यां सुधी तेनी उपयोगिता अने नित्य नूतनता मानवी मनमां टकी रहे छ । नाम मंत्रनो जाप पण आत्मानी क्षुधा-तृषा ने शमावनार छे अने आत्माना बळ-वीर्यने वधारनार छे, तेथी तेनी उपयोगिता अने नित्य नूतनता स्वयमेव अनुभवाय छ । नमस्कार मन्त्रनो जाप एक बाजु ईष्टनु स्मरण. चिंतन अने भावन करावे छे अने बीजी बाजु नित्य नूतन अर्थनी भावना जगाडे छे, तेथी ते मन्त्रने मात्र अन्न, जळ अने पवन तुल्य ज नहि किन्तु पारसमणि अने चिंतामणि कल्पवृक्ष अने कामकुम्भ करतां पण वधारे मुल्यवान मान्यो छ । ___ मानवी मनमां नरकनु स्वर्ग अने स्वर्गनु नरक उभु करवानी ताकात छ । उत्तम मन्त्र वडे ते नरकनु स्वर्ग रची शके छे । श्रद्धा अने विश्वासपूर्वक उत्तम मन्त्रनो जप करनारा सर्वदा सुरक्षित छ । नाम अने नमस्कार मंत्र वडे ईष्टनो प्रसाद अने पूर्णतानी प्राप्ति थाय

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