Book Title: Aradhak Banvano Marg
Author(s): Bhadrankarvijay
Publisher: Bhadrankarvijay

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Page 21
________________ महामंत्रनी अनुप्रेक्षा छ । ईष्टनु नाम सर्व मुश्केलीअोमांथी जीवने पार उतारनारूं सर्वोत्तम साधन छ । ईष्टनो नमस्कार सर्व पापवृत्ति अने पाप प्रवृत्तिनो समूल विनाश करे छ । ईष्ट तत्त्वनी अचिन्त्य शक्ति ___धर्म मात्रनुं ध्येय आत्मज्ञान छ । मंत्रना ध्यान मात्रथी ते सिद्ध थाय छे । मंत्रनु रटण एक बाजु हृदयनो मेल, ईर्षा असूयादिने साफ करवानु कार्य करे छे । बीजी बाजु तन, मन, धननी आधि, व्याधि अने उपाधिोने टाळी आपे छ । शरीरनो व्याधि असाध्य होय अने कदाच न टले तो पण मननी शांति अने बाह्य व्याधि मात्रने समताथी सहन करवानी शक्ति तो ते आपे ज छे । ते केवी रीते आपे छे, ए प्रश्न अस्थाने छे। केटलाक प्रश्न अने तेना उत्तर बुद्धिथी के बुद्धिने आपी शकाय तेवा होता नथी । हृदयनी वात हृदय ज जाणी शके छे। श्रद्धानी वात श्रद्धा ज समजी शके छे । परमात्मतत्त्व अने तेनी शक्ति न माननारने मन पोतानो 'अहं' ए ज परमात्मानु स्थान ले छ । सर्व समर्थनु शरण लीधा विना अहं कदी टळतो नथी । अने अहं टळतो नथी त्यांसुधी शांतिनो अनुभव आकाश कुसुमवत् छ। पू० उपाध्याय श्रीयशोविजयजी महाराजश्रीए 'अध्यात्मसारग्रन्थ'ना अनुभवाधिकारमा कॉछे के : "शान्ते मनसि ज्योतिः, प्रकाशते शान्तमात्मनः सहजम्। . भम्मीभवत्यविद्या. मोहध्वान्तं विलयमेति ॥१॥ शान्त चित्तमां आत्मानो सहज शुद्ध स्वभाव प्रकाशित थाय छे, ते वखते अनादिकालीन अविद्या-मिथ्यात्वमोहरूप अंधकार नाश पामे छ । . परमात्मा अने तेना नामनो लाभ बधाने नहि पण सदाचारी, श्रद्धावान अने भक्त हृदयने ज मळे छ । परमात्मानी अचिन्त्यशक्ति उपर मनुष्यने ज्यारे पूरे पूरी श्रद्धा बेसे छे, त्यारे तेनी साते धातुअोनु रूपांतर थाय छे । तेथी परमात्मानु नाम ए भक्त माटे ब्रह्मचर्यनी दशमी वाड पण छे, नव वाड करतां पण तेनु सामर्थ्य अधिक छ। मंत्रयोगनी सिद्धि मंत्र ए शब्दोनो समूह छे, जेनो कोई अर्थ नीकळतो होय छ । आ शब्दोना अर्थ ने साकार घवु ए ज मंत्रने सिद्ध थQ गणाय छे । शब्दथी वायु पर आघात थाय छे, ज्यारे कोई शब्द बोलाय छे, त्यारे अनंत एवा वायुरूपी महासागरमां तरंग पेदा थाय छे । तरंगथी गति, गतिथी गरमी अने गरमोथी स्वास्थ्य सुधरे छ । प्राणायामनो पण ए ज उद्देश छे । अने ते मंत्र जापथी सिद्ध थाय छ ।

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