Book Title: Aradhak Banvano Marg
Author(s): Bhadrankarvijay
Publisher: Bhadrankarvijay

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Page 14
________________ १४ श्री कापरड़ा स्वर्ण जयन्ती महोत्सव ग्रन्थ नथी अने तीक्ष्ण बुद्धि विना नमस्कारना गुणोनुं स्मरण चित्तरूपी भूमिमां सुदृढ करी शकातुं नथी। ____नमस्कार कर्तामा रहेलो न्याय, नमस्कार्य तत्त्वमा रहेली दया, नमस्कार क्रियामा रहेनुं सत्य बुद्धिने सूक्ष्म, शुद्ध अने स्थिर करी आपे छ । ए रीते बुद्धिने सूक्ष्म, शुद्ध अने स्थिर करवान सामर्थ्य नमस्कारमा रहेलुं छ । __ नमस्कारमा अहंकार विरुद्ध नम्रता छ, प्रमाद विरुद्ध पुरुषार्थ छ अने हृदयनी कठोरता विरुद्ध कोमळता छ । नमस्कारथी एक बाजु मलिन वासना, बीजी बाजू चित्तनी चंचळता दूर थवानी साथे ज्ञानन घोर आवरण जे अहंकार ते टळी जाय छ । नमस्कारन क्रिया श्रद्धा, विश्वास अने एकाग्रता वधारे छ। श्रद्धाथी तीव्रता, विश्वासथी सूक्ष्मात अने एकाग्रताथी बुद्धिमां स्थिरतागुण वधे छ । नमस्कारथी साधकन मन परम तत्त्वमा लागे छ अने बदलामां परम तत्त्व तरफथी बुद्धि प्रकाशित थाय छ । ते प्रकाशथी बुद्धिना दोष मंदता, संकुचितता, संशययुक्तता, मिथ्याभिमानितादि अनेक दोषो एक साथे नाश पामे छ । नमस्कार मंत्र ए सिद्ध मंत्र छ नमस्कार एक मंत्र के अने मंत्रनो प्रभाव मन पर पड़े छ । मनथी मानवान अने बुद्धिथी जाणवानु काम थाय छ । मंत्रथी मन अने बुद्धि बंने परम तत्त्व ने समर्पित थई जाय छ । श्रद्धानु स्थान मन छ अने विश्वासन स्थान बुद्धि छ । ए बंने प्रभुने समर्पित थई जाय छ, त्यारे ते बंनेना दोषो बळीने भस्मीभूत थई जाय छ । स्वार्थांधताना कारणे बुद्धि मंद थई जाय छ, कामांधताना कारणे बुद्धि कुबुद्धि बनी जाय छ, लोभांधताना कारणे बुद्धि दुर्बुद्धि बनी जाय छ, क्रोधांधताना कारणे बुद्धि संशयी बनी जाय छ', मानांधताना कारणे बुद्धि मिथ्या बनी जाय छ, कृपणांधताना कारणे बुद्धि अतिशय संकुचित बनी जाय छ । नमस्काररूपी विद्युत चित्तरूपी बेटरीमां ज्यारे प्रगट थाय छ', त्यारे स्वार्थथी मांडीने काम, क्रोध, लोभ, मान, माया, दर्प आदि सघळा दोषो दग्ध थई जाय छ अने चित्तरत्न चारे दिशाएथी निर्मलपणे प्रकाशी उठे छ । समता, क्षमा, संतोष, नम्रता, उदारता, निःस्वार्थता आदि गुणो तेमां प्रगटी नीकळे छ ।। शब्द ए नमस्कारनु शरीर छ, अर्थ ए नमस्कारनो प्राण छ अने भाव ए नमस्कारनो आत्मा छ । नमस्कारनो भाव ज्यारे चित्तने स्पर्श छ, त्यारे मानवने मळेल आत्मविकास माटेनो अमूल्य अवसर धन्य बने छ । नमस्कारथी आरंभ थयेल भक्ति अंते ज्यारे समर्पणमां पूर्ण थाय छ त्यारे मानवी पोताने प्राप्त थयेल जन्मनी सार्थकता अनुभवे छ ।

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