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महामंत्रनी अनुप्रेक्षा
नमस्कार मंत्र ए सिद्ध मंत्र छ । ए मंत्र- स्मरण करवा मात्रथी आत्मामा जीवराशि ऊपर स्नेह परिणाम जागृत थाय छ । ए माटे स्वतंत्र अनुष्ठान के पुरश्चरणादि विधिनी पण जरूर पडती नथी । तेमा मुख्य कारण पंच परमेष्ठि भगवंतोनो अनुग्रहकारक सहज स्वभाव छ, तथा प्रथम परमेष्ठि अरिहंत भगवंतोनो “जीव मात्रनुं आध्यात्मिक कल्याण थानो" एवो सिद्ध संकल्प छ।
प्रभेदमां अभय अने भेदमा भय गुण बहुमाननो परिणाम अचिन्त्य शक्तियुक्त कह्यो छ । निश्चयथी बहुमाननो परिणाम अने व्यवहारथी बहुमाननो सर्वोत्कृष्ट विषय, बेऊ मळीने कार्य सिद्धि थाय छ ।
गुणाधिकनुं स्मरण करवाथी रक्षा थाय छ, तेमां वस्तु स्वभावनो नियम कार्य करे छ । ध्याता अंतरात्मा ज्यारे ध्येय परमात्मानुध्यान करे छे, त्यारे चित्तमां ध्याता-ध्येयध्यान ए त्रणेनी एकता रूपी समापत्ति थाय छे, तेथी क्लिष्ट कर्मनो विगम थाय छे अने अंतरात्माने अद्भूत शांति मळे छे, तेनुं ज नाम मंत्रथी रक्षा गणाय छ । - परना सुकृतनी अनुमोदनारूप सुकृत अखंडित शुभ भावनू कारण छ । परम तत्त्व प्रत्ये समर्पण भाव एक बाजु नम्रता अने बीजी बाजु निर्भयता लावे छे अने ए बेना परिणामे निश्चिन्तता अनुभवाय छ । . अभेदमां अभय छे अने भेदमां भय छ । नमस्कारना प्रथम पदमां 'अरिहं' शब्द छे, ते अभेदवाचक छे, तेथी तेने करातो नमस्कार अभयकारक छ । अभयप्रद अभेदवाचक 'अरिहं' पदनुं पुनः पुनः स्मरण त्राण करनारूं, अनर्थने हरनारूं छे तथा आत्मज्ञानरूपी प्रकाशने करनालं होवाथी सौ कोई विवेकीने अवश्य आश्रय लेवा लायक छ ।
नमस्कार मंत्र ए महा क्रिया योग छे पंच मंगलरूप नमस्कार मंत्र ए महाक्रिया योग छे, केमके तेमां बने प्रकारना तप, पांचे प्रकारनो स्वाध्याय अने सर्वोत्कृष्ट तत्त्वोनुं प्रणिधान रहेलुं छे ।
बाह्य आभ्यंतर तप ए कर्म रोगनी चिकित्सारूप बने छ । पांचे प्रकारनो स्वाध्याय ए महामोहरूपी विषने उतारवा माटे मंत्र समान बनी रहे छ । अने परम पंचपरमेष्ठिन प्रणिधान भवभयर्नु निवारण करवा माटे परम शरणरूप बने छ ।
नमस्काररूप पंचमंगलनी क्रिया ए अभ्यंतर तप, स्वाध्याय अने ईश्वर प्रणिधानरूप महाक्रियायोग छे, एर्नु स्मरण अविद्यादि क्लेशोनो नाश करे छे अने चित्तनी अखंड समाधिरूप फलने उत्पन्न करे छे । क्लेशनो नाश दुर्गतिनो क्षय करे छ । अने समाधिभावना सद्गतिर्नु सर्जन करे छ ।