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उपोद्घात
। जगत् के स्वरूप के बारे में जो भ्रांति अनादिकाल से चली आई है, उसका 'स्पष्टीकरण' केवल सर्वज्ञ के अलावा अन्य कोई दे सके, ऐसा नहीं है। ऐसे सर्वज्ञ पुरुष हज़ारों साल पहले स्पष्टीकरण दे गए हैं। आज इस विकराल कलिकाल में वह सत्य आवृत हो गया है। उसका स्पष्टीकरण तो जो सर्वज्ञ हो चुके हों, वे ही आज फिर से दे सकते हैं, और आज इस महादुषमकाल में, कलियुग जहाँ संपूर्णतया सोलह कलाओं तक पहुँचकर चोटी पर विराजमान है, वहाँ अनंतकाल का आश्चर्य प्रकट हुआ है, और वह है सर्वज्ञ श्री ‘दादा भगवान' का प्राकट्य ! उन्होंने पूरे जगत् का स्वरूप, उत्पत्ति, व्यय और संचालन के बारे में तरह-तरह के तर्कवितर्कों का संपूर्ण समाधान एक ही वाक्य में दे दिया है! और वह है,
'द वर्ल्ड इज द पज़ल इटसेल्फ' __ - दादाश्री।
'जगत् स्वयं पहेली है, बनानेवाला कोई बाप भी नहीं जन्मा है।' पूरा जगत् किस तरह चल रहा है? साइन्टिफिक सरकमस्टेन्शियल एविडेन्सेस मात्र से जगत् चल रहा है। अब ये वैज्ञानिक सांयोगिक प्रमाण, वे स्थूलतम से सूक्ष्मतम तक के हैं, उन सभी का जो ज्ञाता-दृष्टा हो, वही सर्वज्ञ है,
और वही 'पुरुष' जगत् स्वरूप का यथार्थ दर्शन करवा सकते हैं। इसीलिए तो नरसिंह महेता ने भी गाया है कि,
सृष्टि मंडाण छे सर्व एणी पेरे जोगी जोगेश्वरा कोक जाणे...
यहाँ नरसिंह भगत का 'योगी-योगेश्वरा' कहने का तात्पर्य यह है कि आत्मयोगी या आत्मयोगेश्वर, कोई विरला ही सृष्टि की रचना को समझ सकता है! अन्य देहयोगी, वचनयोगी या मनोयोगियों में से कोई भी नहीं जान सकता। ये दो वाक्य, जो कि दादाश्री के श्रीमुख से अंग्रेज़ी में निकले हैं, वे ईश्वर को जगत्कर्ता स्थान से पदच्युत कर देते हैं ! और जो भ्रांति ईश्वर पर, भगवान पर, अल्लाह पर या गॉड पर गलत आरोप लगाती है, वह पूरी ही खत्म कर देते हैं!