Book Title: Apbhramsa Bharti 2005 17 18
Author(s): Kamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 8
________________ सम्पादकीय “छठी शती ईसवी से चौदहवीं शती ईसवी तक अपभ्रंश भाषा में अनेक गौरवपूर्ण ग्रन्थ रचे गए जिसके कारण भारतीय संस्कृति के गौरव की अक्षुण्णनिधि अपभ्रंश साहित्य में सुरक्षित है।' “योगीन्दुदेव और महाकवि स्वयंभू के हाथों अपभ्रंश साहित्य का बीजारोपण हुआ। पुष्पदन्त, धनपाल, रामसिंह, देवसेन, हेमचन्द्र, सरह, कण्ह और वीर जैसी प्रतिभाओं ने इसे प्रतिष्ठित किया और अन्तिम दिनों में भी इस साहित्य को यश:कीर्ति और रइधू जैसे सर्वतोमुखी प्रतिभावाले महाकवियों का सम्बल प्राप्त हुआ। इन शक्तिशाली व्यक्तित्व के धनी कवियों का आश्रय पाकर यह साहित्य अल्पकाल में ही पूर्ण यौवन के उत्कर्ष पर पहुँच गया। अभिव्यक्ति की नई शैलियों से समन्वितकर इन्होंने इसे इस योग्य बना दिया कि वह पूरे युग की मनोवृत्तियों को प्रतिबिम्बित करने में समर्थ हो सका।" “कवि स्वयंभू की दृष्टि अपने काल और लोक के प्रति यथार्थपरक होते हुए भी कल्पना का आश्रय लेती रही है, उसने परम्परा को भी आत्मसात किया है। अभ्यास के होते हुए उनके पास नैसर्गिक प्रतिभा की कमी नहीं रही। शायद यही कारण है कि महापण्डित राहुल की दृष्टि में भारत के एक दर्जन कवियों में से एक वे भी थे।" "राम की तुलना में स्वयंभू ने सीता के चरित्र को कहीं ऊँचा उठाया है। यह सीता ‘देवता-भाव' से सम्पन्न नहीं है, वह एक सामान्य किन्तु दृढ़प्रतिज्ञ, स्वाभिमानी, कष्टसहिष्णु, कर्मठ, निर्भीक एवं साहसी, लोककलाओं में प्रवीण, कोमलहृदया, सच्चरित्र और स्वतन्त्र व्यक्तित्व से सम्पन्न तथा आत्मविकास में संलग्न रहनेवाली है और इस रूप में वह आज की नारी के समकक्ष खड़ी है। आत्मविश्वास से भरी हुई, अन्तर्द्वन्द्वों और संघर्षों के बीच, अन्याय-अत्याचार का विरोध करती हुई।" “अपभ्रंश साहित्य का सर्वाधिक प्रचलित और लोकप्रिय काव्यरूप, चरिउकाव्य है। अपभ्रंश में अनेक चरिउकाव्य मिलते हैं, जैसे - पउमचरिउ, रिट्ठणेमिचरिउ, णायकुमारचरिउ, जसहरचरिउ, जंबूसामिचरिउ, सुदंसणचरिउ, करकंडचरिउ, पउमसिरिचरिउ, पासणाहचरिउ, सुकुमालचरिउ आदि-आदि। ये सभी चरिउकाव्य अपने काल के ज्ञानकोश तथा भारतीय इतिहास और संस्कृति के आकर ग्रन्थ हैं। वैसे देखा जाए तो इनमें भारत के सन्दर्भ में समूची मानवीय चेतना और संस्कृति का जीवन्त चित्र है। इस चित्र को गागर में सागर भरने रूप प्रतिबिम्बित करने हेतु अनेक सूक्तियों का प्रयोग भी अनायास ही हो गया है। जैसे - (vii)

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