Book Title: Apbhramsa Abhyas Saurabh
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 14
________________ 7. आनन्द छन्द लक्षण- इसमें चार चरण होते हैं (चतुष्पदी)। प्रत्येक चरण में पाँच मात्राएँ होती हैं और चरण के अन्त में लघु (1) आता है। उदाहरण 5 ।। ।।।।। मा रमसु, परिहरसु । ।। 5। 55। इय छंदु, आणन्दु । सुदंसणचरिउ 4.12.15-16 अर्थ - इससे रमण मत करो, इसे त्याग दो। यह आनन्द छन्द है। 8 गाहा छन्द लक्षण- इसमें दो चरण होते हैं (द्विपदी)। प्रत्येक चरण में सत्ताइस मात्राएँ होती हैं। प्रथम व तृतीय यतियाँ शब्द के बीच में आती हैं। उदाहरण।।5।।5।। ।। ।। 55 5।।। मयरद्धयनच्चु नडं, तिउ जंबुकुमारें भेल्लियउ । ।।5। । 55 ।। ।।।।। 55।।। बहुवाउ ताउ - णं दि, ठुछ कट्ठमयउ वाउल्लियउ॥ जंबूसामिचरिउ 9.1.5-6 अर्थ- मकरध्वज का नाच नाचती हुई उन वधुओं को जंबुकुमार ने अपने सम्पर्क में लायी हुई काठ की पुत्तलियों के समान देखा। (7) अपभ्रंश अभ्यास सौरभ . (छंद एवं अलंकार) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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