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20. उप्पहासिनी छन्द लक्षण- इसमें दो चरण होते हैं (द्विपदी)। प्रत्येक चरण में सोलह मात्राएँ होती हैं और अन्त में लघु-गुरु-लघु-गुरु होता है। उदाहरण11551 151 515 5115 11 SISIS कुमुआवत्त - महिन्द - मण्डला, सूरसमप्पह भाणुमण्डला।
पउमचरिउ 60.6.। अर्थ- कुमुदावर्त, महेन्द्रमण्डल, सूरसमप्रभ, भाणु-मण्डल।
वर्णिक छन्द 21. मालती छन्द लक्षण- इसमें दो चरण होते हैं (द्विपदी)। प्रत्येक चरण में दो जगण (15। + Is1) व छः वर्ण होते हैं। उदाहरणजगण जगण जगण जगण । । । । ।।।।। णवेवि मुणिंदु भवीयणचंदु। 1 2 3 4 5 6 123456
णायकुमारचरिउ 9.21.1 अर्थ - भव्यजनों में चन्द्र के समान श्रेष्ठ मुनिराज को नमस्कार करके। 22. दोधक छन्द लक्षण- इसमें दो चरण होते हैं (द्विपदी)। प्रत्येक चरण में तीन भगण (5।। + SII + 5II) और दो गुरु (5 + 5) व 11 वर्ण होते हैं।
अपभ्रंश अभ्यास सौरभ . (छंद एवं अलंकार)
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