Book Title: Apbhramsa Abhyas Saurabh
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 51
________________ 7. सारीय छंद लक्षण- इसमें दो चरण होते हैं (द्विपदी)। प्रत्येक चरण में बीस मात्राएँ होती हैं और अन्त में गुरु (5) व लघु (।) होता है। उदाहरण ।।ऽ । ऽ । ऽ।।। ऽ ऽ । तिमिरं णियच्छेवि पंडिय गया तत्थ, .।। ।ऽऽ । ऽऽ।ऽ । थिउ झाणजोएण सेट्ठीसरो जत्थ । सुदंसणचरिउ 8.20.1 अर्थ- अन्धकार फैला देखकर पंडिता वहाँ गई जहाँ सेठों का अग्रणी सुदर्शन ध्यानयोग में स्थित था। 8. शशितिलक छंद लक्षण- इसमें दो चरण होते हैं (द्विपदी)। प्रत्येक चरण में बीस मात्राएँ होती . हैं तथा सर्वत्र लघु (1) होता है। उदाहरण।। ।।। ।।।। ।।।।।। ।।।।। जय अणह चउदिसु वि पडिफुरिय चउवयण। जय गलियमलपडल कमलदलसमणयण।। सुदंसणचरिउ 1.11.3-4 अर्थ- हे भगवन, आप निष्पाप हैं और समवशरण के बीच चारों दिशाओं में आपके चार मुख दिखाई देते हैं। आपके कर्मरूपी मल का पटल विनष्ट हो गया है। आपके नेत्र कमलपत्र के सदृश सुन्दर हैं। (44) अपभ्रंश अभ्यास सौरभ (छंद एवं अलंकार) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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