Book Title: Apbhramsa Abhyas Saurabh
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

View full book text
Previous | Next

Page 66
________________ (ग) निम्नलिखित पद्याशों के मात्राएँ लगाकर इनमें प्रयुक्त छन्दों के लक्षण व नाम बताइए - 1. म चिराहि ए एहि उम्मीलणेत्ताइँ, लहु गंपि आलिंगि सोमालगत्ताइँ। सुदंसणचरिउ 8.20.5 अर्थ - आओ, आओ, शीघ्र चलकर उस उन्मीलित नेत्र सुकुमारगात्री का आलिंगन करो। 2. पुच्छिउ वजयण्णे ण हसेवि विजुलङ्गो।। भो भो कहिँ पयट्ट वहु-वहल-पुलइयङ्गो।। पउमचरिउ 25.3.1 अर्थ - वज्रकर्ण ने हँसकर विद्युदंग से पूछा - अरे-अरे, अत्यन्त पुलकित अंग तुम कहाँ जा रहे हो? .. अमरिस-कुद्धएण अमर-वरङ्गण-जूरावणेणं। णिब्भच्छिउ विहीसणो पढम-भिडन्तें रावणेणं ।। पउमचरिउ 66.6.1 अर्थ - देवांगनाओं को सतानेवाले रावण ने क्रोध से भरकर पहली ही .. भिड़न्त में विभीषण को ललकारा। 4. के वि सामि-भत्ति-वन्त, मच्छरग्गि-पज्जलन्त। पउमचरिउ 59.2.5 अर्थ - स्वामी की भक्ति से परिपूर्ण वे ईर्ष्या की आग में जल रहे थे। 5. गुणाणं णिवासो, दुहाणं विणासो। विरायं हणंतो, सरायं जणंतो। करकंडचरिउ 4.16.3-4 .. (59) अपभ्रंश अभ्यास सौरभ (छंद एवं अलंकार) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 64 65 66 67 68 69 70