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अर्थ - जब सारथी ने यह देखा कि कुमार अक्षय रणरस (वीरता) से
भरा हुआ है तो उसने हनुमान के सम्मुख रथ बढ़ा दिया। रणस्थल में पहुँचते ही हनुमान ने उसे इस प्रकार देखा मानो समुद्र ने गंगा के प्रवाह को देखा हो। जय विगयभय विसयरइजलणणवजलय। जय सहसयरसरिसपरिफुरियजुइवलय।।
सुदंसणचरिउ 1.11.9-10 अर्थ - आप भयरहित हैं और विषयों के राग की अग्नि को नये मेघ के
समान वमन करनेवाले हैं। आपका प्रभामण्डल सूर्य के सदृश स्फुरायमान है। परधण-परकलत्त-परिसेसहुँ परवल-सण्णिवायहुं। एक्के लक्खणेण विणिवाइय सत्त सहास रायहुं ।।
पउमचरिउ 40.4.1 अर्थ - परधन और परस्त्रियों को समाप्त करनेवाले शत्रु-सैन्य के लिए : सन्निपात के समान सात हजार राजाओं के सैन्य को अकेले
लक्ष्मण ने मार गिराया। 5. पच्छएँ मेहवाहणो गहिय-पहरणो णिग्गओ तुरन्तो। णं जुअ-खएँ सणिच्छरो भरियमच्छरो अहर-विप्फुरन्तो।
. - पउमचरिउ 53.4.1 अर्थ - उसके पीछे अस्त्र लेकर मेघवाहन भी तुरन्त निकल पड़ा मानो
युग का क्षय होने पर मत्सर से भरा कम्पिताधर शनैश्चर ही हो। सुमरमि णवकोमलदलकुवलयताडणउ। मुत्ताहलहारावलिबंधणछोडणउ ।
सुदंसणचरिउ 8.41.9-10
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अपभ्रंश अभ्यास सौरभ (छंद एवं अलंकार)
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