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7.
लाक्ष
अर्थ - स्मरण आता है वह नये कोमल पत्रों से युक्त नीलकमल द्वारा
ताड़न तथा मुक्ताफलों की छटावली का बाँधना और तोड़ना। लच्छिभुत्ति तं लच्छीणयरु पईसई। ववहरन्तु जं सुन्दरु तं तं दीसई ।।
पउमचरिउ 45.4.1 अर्थ - लक्ष्मीभुक्ति उस नगर में प्रवेश करता है और घूमते हुए जो-जो
- सुन्दर है उसे देखता है। 8. कहिं जि दिट्ठ-छारया, लवन्त मत्त-मोरया। कहिं जि सीह-गण्डया, धुणन्त-पुच्छ-दण्डया।।
पउमचरिउ 32.3.5-6 अर्थ - कहीं पर भालू दिखायी दे रहे थे और कहीं पर बोलते हुए मस्त
मोर। कहीं पर अपने पूंछ-रूपी दण्डों को धुनते हुए सिंह और
गैंडे थे। 9.
नंदणो मुणेवि माय, कारणेण केण आय। आनमंसियं पयाइँ, पुच्छइ त्ति अम्मि काइँ।
___जंबूसामिचरिउ 9.17.5-6 अर्थ – किसी कारण से माँ को आयी जानकर पुत्र ने माँ के पैरों को
नमस्कार करके पूछा - माँ क्या बात है? 10. अच्छइ जाव सुहेणं, भुंजइ भोय चिरेणं। ताव सधम्मु सुसीलो, मत्तयकुंजरलीलो।।
करकंडचरिउ 8.3.3-4 अर्थ - सुख से रहता हुआ दीर्घकाल तक भोग भोगता रहा। तब एक,
धर्मवान, सुशील, मत्त कुंजर के समान लीला करता हुआ..............।
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अपभ्रंश अभ्यास सौरभ (छंद एवं अलंकार)
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