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अर्थ - वह गुणों का निवास और दुःखों का विनाश था एवं विराग का हन्ता और सराग का जनक ।
6.
अर्थ - मंत्री के चित्त को वह अत्यन्त भाया । उसके तेज को सूर्यताप तथा वेग को वायु भी नहीं पाते थे। जब वह भूमिगृह (घुड़साल) में बाँधा हुआ रहता था तब एक सुआ उसे स्वच्छन्द भाव से देखा करता था।
7.
8.
मंति चित्तस्स अच्वंतु सो भाविओ, सूरतावेण वाएण णे पाविओ । भूमिगेहम्मि जा बद्धओ अच्छए, सग्गिणीछंदकीरो वि तं पेच्छए । करकण्डचरिउ 8.2.7-8
पउमचरिउ 32.3.3 -4
अर्थ - जो कहीं पर भीम गुफाओं वाला और कहीं पर झरते हुए जल से युक्त निर्झरवाला था । कहीं पर रक्त, चंदन, तमाल, ताल और पीपल के वृक्ष थे।
1.
कहिं जि भीमकन्दरो, झरन्त - णीर- णिज्झरो । कहिं जि रत्तचन्दणो, तमाल-ताल - वन्दणो ।
(60)
करकण्डचरिउ 8.3.5-6
अर्थ - प्रबल और दीर्घ भुजाओं से युक्त, एक सुन्दर गोधननाथ (ग्वाला) उस वन में आया वह जब वहाँ बैठा हुआ था ।
(घ) निम्नलिखित पद्यों के मात्रा लगाकर इनमें प्रयुक्त छन्दों के लक्षण व नाम बताइए -
चउ - दुवार - चउ गोउर- चउ-तोरण- रवण्णिया । चम्पय-तिलय-वउल-णारङ्ग-लवङ्ग- छण्णिया ।।
पीवरदीहरबाहो, सुंदरु गोहणणाहों । तेत्थ वणम्मि पवण्णो, चेटुइ जाव णिसण्णो ।
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पउमचरिउ 42.10.2
अपभ्रंश अभ्यास सौरभ
(छंद एवं अलंकार)
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