Book Title: Apbhramsa Abhyas Saurabh
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

View full book text
Previous | Next

Page 56
________________ किया। उनके न लोभ था, न लज्जा, न भय और न अभिमान। उनको यदि प्रेम था तो तपश्चर्या से। 17. तोमर छंद लक्षण- इसमें दो चरण होते हैं (द्विपदी)। प्रत्येक चरण में चार बार गुरु (5) व चार बार लघु (1) आता है। गल 5 I SISI SI SISI SISI के वि णीसरन्ति वीर, भूधर व्व तुङ्ग धीर। पउमचरिउ 59.2.2 अर्थ- पहाड़ की भाँति ऊँचे और धीर कितने ही योद्धा निकल पड़े। वर्णिक छन्द 18. सोमराजी छन्द लक्षण - इसमें चार चरण होते हैं (चतुष्पदी)। प्रत्येक चरण में 6 वर्ण व दो यगण (155) होते हैं। उदाहरणयगण यगण यगण यगण Is siss iss Iss णिवो सोयभिण्णो, थिओ जा विसण्णो । 12 3 4 5 6 12 3 4 5 6 यगण . 'यंगण यगण यगण ।।55 । ऽ ।ऽऽ ।ऽऽ सुरो को वि धण्णो, णहाओ पवण्णो । 1 2 3 4 5 6 1 2 3 4 5 6 करकंडचरिउ 4.16. 1-2 अर्थ- इस प्रकार शोक से विह्वल विषादयुक्त हुआ राजा जब वहाँ बैठा था, अपभ्रंश अभ्यास सौरभ (49) . (छंद एवं अलंकार) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70