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अभ्यास (क) निम्नलिखित पद्याशों के मात्राएँ लगाकर इनमें प्रयुक्त छन्दों
के लक्षण व नाम बताइए - 1. तो फुरन्त-रत्तन्तलोयणो, कलि-कियन्तकालो व्व भीसणो।।
पउमचरिउ 23.8.1 अर्थ - तब जिसके फड़कते हुए लाल-लाल नेत्र थे, जो कलि-कृतान्त
और काल की तरह भीषण था। 2. अट्ठ दो दिवह वोलीण छुडु जाय, ताम जा णाम जिणयासि सणुराय।
सुदंसणचरिउं 3.5.7 अर्थ - जब आठ और दो अर्थात् दस दिन व्यतीत हुए तब उस पुत्र की
जिनदासी नामकी माता अनुरागसहित....। 3. दोहिँ वि घरहिँ घुसिणछडउल्लउ दिज्जइ '
दोहिँ वि घरहिँ रयणरंगावलि किज्जइ। दोहिँ वि घरहिँ धवलु मंगलु गाइज्जइ दोहिँ वि घरहिँ गहिरु तूरउ वाइज्जइ ।।
सुदंसणचरिउ 5.4.7-8 अर्थ - दोनों ही घरों में केसर की छटाएँ दी गईं। दोनों ही घरों में रत्नों
की रंगावलि की गई। दोनों ही घरों में मंगल गान गाये गये। दोनों
ही घरों में गंभीर तूर्य बजने लगा। 4. दुरियाणण-दुस्सर-दुव्विसहा, ससि-सूर-मऊर-कुरूर-गहा।
पउमचरिउ 59.6.4 अर्थ - दुरितानन, दुर्गम्य और असह्य, चन्द्रमा, सूर्य, मऊर और कुरुर
ग्रह भी निकल आये।
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अपभ्रंश अभ्यास सौरभ (छंद एवं अलंकार)
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