________________
'
द
9. मंजरी छंद लक्षण- इसमें दो चरण होते हैं (द्विपदी)। प्रत्येक चरण में इक्कीस मात्राएँ होती हैं। उदाहरण।।। ।। ऽ ऽ।। । । ।5 कहिउ सव्वु तं लक्खण - राम - कहाणउं । 5 ।। ।। । । ।।ऽ । ऽ दण्डयाइ मुणि - कोडि - सिला - अवसाणउं ।।
पउमचरिउ 45.6.1 अर्थ- उसने राम-लक्ष्मण की सब कहानी उन्हें सुना दी कि किस प्रकार दण्डकवन में उन्होंने कोटि शिला को उठा लिया। 10. रासाकुलक छंद लक्षण- इसमें दो चरण होते हैं (द्विपदी)। प्रत्येक चरण में 21 मात्राएँ होती हैं और चरण के अन्त में नगण (II) होता है। उदाहरण
नगण ऽ ऽ ऽ। ।।। ।।। ।।। हा हा णाह सुदंसण सुंदर सोमसुह ।
नगण ।।। ।। । ।। ।।।।।।।। सुअण सलोण सुलक्खण जिणमइअंगरुह ।
सुदंसणचरिउ 8.41.1-2 अर्थ- हाय हाय नाथ, सुदर्शन, सुंदर, चन्द्रमा के समान सुखकारी, सुजन, सलोने, सुलक्षण, जिनमति के सुपुत्र..........। अपभ्रंश अभ्यास सौरभ .
(45) (छंद एवं अलंकार)
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org