Book Title: Apbhramsa Abhyas Saurabh
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 50
________________ ऽ। । ।।। ।।। ।।। 55।। दोहिँ वि घरहिँ गहिरु तूरउ वाइज्जइ। । । ।।। ।।। ।।। ।।।। दोहिँ वि घरहिँ विविहु आहरणु लइज्जइ। ऽ । । ।।।।।।।।।। 55।। दोहिँ वि घरहिँ लडहतरुणिहिँ णच्चिज्जइ। सुदंसणचरिउ 5.4.9-10 अर्थ- दोनों ही घरों में धवल मंगल गान होने लगे, दोनों ही घरों में गम्भीर तूर्य बजने लगा। दोनों ही घरों में विविध आभरण लिये जाने लगे। दोनों ही घरों में सुन्दर तरुणियों के नृत्य होने लगे। 6. मदनावतार छन्द . लक्षण- इसमें दो चरण होते हैं (द्विपदी)। प्रत्येक चरण में बीस मात्राएँ होती हैं और चरण के अन्त में रगण (ऽ । ऽ) होता है। उदाहरण रगण ऽ।ऽ। । ।ऽ ।।। ऽऽ । ऽ रावणेण वि धणुं समरे दोहाइयं। रगण si 5.51 ss 15515 ताम्व तं दन्द जुझं. समोहाइय।। पउमचरिउ 66.8.5 अर्थ- रावण ने विभीषण के धनुष के दो टुकड़े कर दिए तब उन्होंने एकदूसरे को द्वन्द्व युद्ध के लिए सम्बोधित किया। अपभ्रंश अभ्यास सौरभ (छंद एवं अलंकार) (43) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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