Book Title: Apbhramsa Abhyas Saurabh
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 48
________________ उदाहरणऽ । ।।। । । । ।।।। को वि भणइ ण वि लेमि पसाहणु। । । ।। 5।। 5 ।। जाम ण भञ्जमि राहव-साहणु।। पउमचरिउ 59.4.3 अर्थ- कोई बोला - मैं तब तक प्रसाधन ग्रहण नहीं करूँगा जब तक कि रावण की सेना को नष्ट नहीं करता। 2. विलासिनी छन्द लक्षण- इसमें दो चरण होते हैं (द्विपदी)। प्रत्येक चरण में सोलह मात्राएँ होती हैं और चरण के अन्त में लघु (1) व गुरु (5) होता है। उदाहरणऽ। । ऽऽ ।ऽ।ऽ ।ऽ । ऽ ।।। ऽ।ऽ जंतु जंतु पत्तो मसाणए, घुरुहुरंतसंभडिय - साणए, सुदंसणचरिउ 8.16.1 अर्थ- चलते-चलते सुदर्शन श्मशान में पहुँचा, जहाँ कुत्ते घुर्राते हुए भिड़ रहे थे। 3. मत्तमातंग छन्द . लक्षण- इसमें दो चरण होते हैं (द्विपदी)। प्रत्येक चरण में अट्ठारह मात्राएँ होती हैं और चरण के अन्त में जगण (151) होता है। . उदाहरण जगण जगण. ऽ ।ऽ । ऽऽ।।।। ।ऽ ऽ।ऽ ।। ।।। तो दिणे छट्ठि उक्किट्ठकमसेण, दाविया छट्ठियाज्झत्ति वइसेण। सुदंसणचरिउ 3.5.6 .. अपभ्रंश अभ्यास सौरभ . (41) (छंद एवं अलंकार) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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