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11.शालभंजिका छंद लक्षण- इसमें दो चरण होते हैं (द्विपदी)। प्रत्येक चरण में 24 मात्राएँ होती हैं
और चरण के अन्त में लघु (।) व गुरु (5) होता है। उदाहरणऽ । ऽ । ऽऽ।। ।। ।। ऽ।ऽ ताव तेत्थु णिज्झाइय वावि असोय-मालिणी। . 5।। ।।।।। ।।।। ।। ऽ । ऽ . . हेमवण्ण स-पओहर मणहर णाइँ कामिणी।
पउमचरिउ 42.10.1 अर्थ- तब उसने 'अशोकमालिनी' नाम की बावड़ी देखी, सुनहले रंग से वह जैसे, स-पयोधर सुन्दर कामिनी हो। 12. हेलाद्विपदी छंद लक्षण- इसमें दो चरण होते हैं (सम द्विपदी)। प्रत्येक चरण में 22 मात्राएँ होती हैं और चरण के अन्त में दो गुरु (5's) होते हैं। उदाहरण।।। ।। । ।। ऽ।ऽ ।ऽऽ पइज करेवि जाम पहु आहवे अभङ्गो । ।। ।। ।। 55। ऽ।ऽऽ ताम पइट्ट चोरु णामेण विजुलङ्गो ।।
पउमचरिउ 25.2.1 अर्थ- जब युद्ध में वह अभग्न प्रभु यह प्रतिज्ञा कर रहा था कि तभी विद्युदंग चोर वहाँ प्रविष्ट हुआ।
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अपभ्रंश अभ्यास सौरभ (छंद एवं अलंकार)
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