Book Title: Apbhramsa Abhyas Saurabh
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 19
________________ नगण 18. गंधोदकधारा छन्द लक्षण- इसमें चार चरण होते हैं (चतुष्पदी)। प्रत्येक चरण में तेरह मात्राएँ होती हैं व चरण के अन्त में नगण (।।।) होता है। उदाहरणनगण नगण ऽ ।।।। ।। ।।। ।। । ।।।। तं णिसुणेवि डोल्लिय मणेण, मारुइ वुत्तु · विहीसQण, _ नगण । ।। 5 ।।। ।।। ।।5।। 5 ।।। ।। ण गवेसइ जं चविउ पइँ, सयवारउ सिक्खविउ मइँ। पउमचरिउ 49.6.1-2 अर्थ- यह सुनकर विभीषण का मन डोल उठा। उसने हनुमान को बताया कि रावण कुछ समझता ही नहीं, जो कुछ आप कह रहे हैं उसकी मैंने उसे सौ बार शिक्षा दी। 19. अडिल्ल (अलिल्लह) छन्द लक्षण- इसमें दो चरण होते हैं (द्विपदी)। प्रत्येक चरण में सोलह मात्राएँ होती हैं और अन्त में दो मात्राएँ लघु (1) होती हैं। उदाहरण ऽऽऽऽ।। 55।। ।। ।।।।।।।।। छंदालंकार' णिग्घंटइँ, जोइसाइँ गहगमणपयट्टई। णायकुमारचरिउ 3.1.5 अर्थ- उसने छंद, अलंकार, निघण्टु, ज्योतिष, ग्रहों की गमन प्रवृत्तियों । (12) अपभ्रंश अभ्यास सौरभ (छंद एवं अलंकार) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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