Book Title: Apbhramsa Abhyas Saurabh
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 39
________________ उदाहरण तो सोहइ उग्गमि हे ससिद्धउ विमलपहालउ । णावइ लोयहँ दरिसियउ णहसिरिए फलिहकच्चोलउ । - - सुदंसणचरिउ 8.17 घत्ता अर्थ - उस समय आकाश में अपनी विमलप्रभा से युक्त अर्द्धचन्द्र उदित होकर ऐसा शोभायमान हुआ मानो नभश्री ने लोगो को अपना स्फटिक कटोरा दिखलाया हो । व्याख्या - उपर्युक्त पद्यांश में अर्द्धचन्द्र में 'स्फटिक - कटोरे' की सम्भावना के कारण व 'णावइ' वाचक शब्द के कारण उत्प्रेक्षा अलंकार है । 7. विभावना अलंकार - जहाँ कारण के अस्तित्व के बिना कार्य की सिद्धि हो वहाँ विभावना अलंकार होता है। उदाहरण विणु चावें विणु विरइय - थाणें, विणु गुणेहिँ विणु सर - संधाणें । विणु पहरणेहिँ तो वि जज्जरियउ, ण गणइ किं पि पुणव्वसु जरियउ । पउमचरिउ 68. 8.7-8 - अर्थ- धनुष के बिना, स्थान के बिना, डोरा और शरसन्धान के बिना, अस्त्र के बिना ही वह इतना आहत हो गया कि जर्जर हो उठा । दग्ध होकर पुनर्वसु कुछ भी नहीं गिन रहा था । व्याख्या - यहाँ बिना शस्त्रास्त्र व प्रहार के पुनर्वसु को आहत दिखाया गया है। अतः यहाँ विभावना अलंकार है । (32) 8. विरोधाभास अलंकार - वस्तुतः विरोध न रहने पर भी विरोध का आभास ही विरोधाभास है । Jain Education International For Personal & Private Use Only अपभ्रंश अभ्यास सौरभ (छंद एवं अलंकार) www.jainelibrary.org

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