Book Title: Apbhramsa Abhyas Saurabh
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 38
________________ अपभ्रंश में 'व' वाचक शब्द का प्रयोग होता है। उदाहरण - स वि धरिय एंति णारायणेण, वामद्धे गोरि व तिणयणेण। -पउमचरिउ 31.13.4 अर्थ - उसे भी (शक्ति को भी) लक्ष्मण ने उसी प्रकार धारण कर लिया जिस प्रकार शिवजी के द्वारा वामार्द्ध में पार्वती धारण की जाती है। व्याख्या - उपर्युक्त पद्यांश में लक्ष्मण द्वारा शक्ति धारण करने को शिव द्वारा पार्वती धारण करने के समान बताया गया है अतः यहाँ उपमा अलंकार है। 5.रूपक अलंकार - रूपक अलंकार में उपमेय पर उपमान का आरोप कर दिया जाता है अर्थात् उपमेय को ही उपमान बता दिया जाता है। उदाहरण - णामेण णंदिवद्धणु सुत्तेउ, दुण्णय-पण्णय गण-वेणतेउ । - वड्ढमाणचरिउ 1.5.1 अर्थ -उस तेजस्वी राजा का नाम नंदिवर्द्धन था जो दुर्नीतिरूपी पन्नगों के लिए गरुड़ ही था। व्याख्या- उपर्युक्त पद्यांश में दुर्नीति पर पन्नगों का आरोप किया गया है अत: रूपक अलंकार है। 6. उत्प्रेक्षा अलंकार - जहाँ उपमेय में उपमान की संभावना अर्थात् उत्कृष्ट कल्पना का वर्णन हो वहाँ पर उत्प्रेक्षा अलंकार होता है। अपभ्रंश . में इव, णं, णावइ आदि वाचक शब्दों का प्रयोग होता है। (31) अपभ्रंश अभ्यास सौरभ (छंद एवं अलंकार) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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