Book Title: Apbhramsa Abhyas Saurabh
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 27
________________ 8. अण्णु विहीसण गुणधणउ, सन्देसउ णीलहों तणउ। गम्पि दसाणणु एम भणु, विरुआरउ परतियगमणु।। पउमचरिउ 49.5.1 अर्थ - और भी विभीषण! नील का भी यह गुणधन सन्देश है कि जाकर उस रावण से कहो कि परस्त्री-गमन बहुत बुरा है। 9. इय जाम वयुपुण्ण, थिउ लेइ सुपइण्ण। - पिच्छेवि सहसत्ति, चिंतेइ णिवपत्ति।। सुदंसणचरिउ 8.25.1-2 अर्थ - इस प्रकार जब सुदर्शन व्रतपूर्ण सुप्रतिज्ञा ले रहा था तभी राजपत्नी सहसा उसकी ओर देखकर सोचने लगी .......। 10. मुणीण समाणु, अणुव्वजमाणु । णायकुमारचरिउ 9.21.9 अर्थ - मुनि के साथ पीछे-पीछे ....। 11. सोम-सुहं परिपुण्ण-पवित्तं, जस्स चिरं चरियं सु पवित्तं । - पउमचरिउ 71.11.3 अर्थ - सोम की भांति हे कल्याणमय, हे परिपूर्ण, पवित्र, आपका चरित्र सदा से पवित्र है। (ख ) निम्नलिखित पद्यों के मात्राएँ लगाकर इनमें प्रयुक्त छन्दों के लक्षण व नाम बताइए - 1. उवयागउ भावसरू, वें भुंजइ कम्मासऍण विणु। संसाराभावहाँ कार, णु भाउ जि छड्डिय परदविणु। जंबूसामिचरिउ 9.1.18-19 (20) अपभ्रंश अभ्यास सौरभ (छंद एवं अलंकार) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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