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6. अइचडुलु, घणवडलु। गडयडइ, णं पडइ।
सुदंसणचरिउ11.22.5-6 अर्थ- उसके कारण घनपटल अत्यन्त चंचल होकर गड़गड़ाने लगा,
मानो वह पृथ्वी पर गिर रहा हो। 7. वियसियवत्तं, णेहलणेत्तं । इय गुणजुत्तं, दिटुं मित्तं।
सुदंसणचरिउ 4.1.8 अर्थ - प्रसन्न मुख और स्नेहिल नेत्रों वाला था। इन सब गुणों से युक्त
देखकर सुदर्शन ने उसे अपना मित्र बना लिया। उब्भिय कणयदण्ड, धुव्वन्त धवल, धुअ धयवड। रसमसकसमसन्त, तडतडयडन्त, कर गडघड।
पउचरिउ 40.16.4 अर्थ - स्वर्णदण्ड उठा लिये गये। धवल ध्वजपट उड़ने लगे। गजघटाएँ
रसमसाती और कसमसाती हुई तड़तड़ करने लगी। 9. देउ दियसासणं, लेउ गुरुपेसणं।
सुदंसणचरिउ 6.10.9 अर्थ - चाहे ब्राह्मण धर्म का उपदेश दो, चाहे गुरु से दीक्षा लो। 10. सभोयणलीणु, करेइ गिहीणु।
णायकुमारचरिउ 9.21.15 अर्थ - वह गृहस्थ स्वयं भोजन करने में प्रवृत्त होवे। . 11. भावलयामर-चामर-छत्तं, दुन्दुहि-दिव्व-झुणी-पह-वत्तं ।
पउमचरिउ 71.11.5 अर्थ - आप भामण्डल, श्वेत छत्र और चमर, दिव्यध्वनि और दुन्दुभि से .... मंडित है।
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अपभ्रंश अभ्यास सौरभ (छंद एवं अलंकार)
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