Book Title: Apbhramsa Abhyas Saurabh
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy
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उदाहरण
जगण रगण
जगण रगण
151
ऽ ।
S 151 ऽ ।
थुणेइ
देउ मोक्खहेउ चित्ति
123
4 5 6 789 1011
जगण रगण जगण
। ऽ । ऽ ।
ऽ । ऽ।
तवग्गितत्तु
मोहचत्त
12 345
67 89
जंगण रगण जगण
जगण ग
। ऽ । ऽ। ऽ । ऽ ।
। ऽ ।
ऽ । ऽ
सुरिंदवंदु ते मुणिंद ता णिसण्णु दिट्ठओ ।
12345 6 789 10 111213141516
जगण ग
रगण
अपभ्रंश अभ्यास सौरभ (छंद एवं अलंकार)
ऽ ।
जाम
1213
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जगण रगण जगण
रगण जगण ग
151 ऽ । ऽ । ऽ।
ऽ।ऽ । ऽ । ऽ
मयाण भट्टु णेत्तइट्टु जत्तिगत्तओ।
12 3 45 67 89 10111213141516
रगण जगण ग
ऽ । ऽ । ऽ । ऽ
सिद्धिकंतरत्तओ।
10111213141516
सुदंसणचरिउ 10.3.1 अर्थ- इस प्रकार जब सुदर्शन चित्त में हर्षित होकर मोक्ष के हेतुभूत जिनेन्द्र देव की स्तुति कर रहा था, तभी उसने वहाँ सुरेन्द्र द्वारा वंदनीय एक मुनिराज को बैठे देखा। वे मुनिराज तपरूपी अग्नि से तपाये हुए, मोह से त्यक्त व सिद्धिरूपी कांता में अनुरक्त, मदों से रहित, नेत्रों को इष्ट एवं शरीर के मैल लिप्त थे।
ऽ । ऽ
हिट्ठओ ।
141516
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(17)
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