Book Title: Apbhramsa Abhyas Saurabh
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 23
________________ हा.. मेघों के समान गर्जना करनेवाला उन्मत्त हाथी, उस पर कोई आघात नहीं कर सकता जो अपने मन में जिनेन्द्र का स्मरण कर रहा हो। 25. वसन्तचत्वर छन्द लक्षण- इसमें दो चरण होते हैं (द्विपदी)। प्रत्येक चरण में जगण (ISI), रगण (ऽ।ऽ) जगण (ISI), रगण (55) व 12 वर्ण होते हैं। उदाहरण जगण रगण जगण रगण 151515151515 झरंतसच्छविच्छुलंभणिज्झरं 123456789101112 जगण रगण जगण रगण ।ऽ । ऽ । ऽ । ऽ । ऽ।ऽ भरंतरूंदकुंडकूव कंदरं। 123456789 101112 जसहरचरिउ 3.16.3 अर्थ- हमने देखा कि उस वन में स्वच्छ बिखरे हुए पानी के झरने झर रहे हैं जिनके द्वारा विस्तीर्ण कुण्ड, कूप और कन्दर भर रहे हैं। 26. पंचचामर छन्द लक्षण- इसमें चार चरण होते हैं (चतुष्पदी)। प्रत्येक चरण में जगण (ISI), रगण (515), जगण (ISI), रगण (5Is), जगण (151) और गुरु व 16 वर्ण होते हैं। (16) अपभ्रंश अभ्यास सौरभ (छंद एवं अलंकार) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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