Book Title: Apbhramsa Abhyas Saurabh
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 18
________________ नगण 15. कुसुमविलासिका छन्द लक्षण- इसमें दो चरण होते हैं (द्विपदी)। प्रत्येक चरण में आठ मात्राएँ होती हैं। प्रारम्भ में नगण (।।।) और अन्त में लघु (1) व गुरु (5) होता है। उदाहरण लग नगण लग ।।। ।।। 5 ।।। ।।।। चलइ णिवबलं, दलइ महियलं। सुदंसणचरिउ 9.3.1 अर्थ - राजा का सैन्य चल पड़ा और पृथ्वीतल को रौंदने लगा। 16. अमरपुरसुन्दरी छन्द लक्षण- इसमें दो चरण होते हैं (द्विपदी)। प्रत्येक चरण में दस मात्राएँ होती . हैं। चरण के अन्त में लघु (1) व गुरु (5) होता है। उदाहरण लग लग ।।। ।।ऽ।ऽ ।।। ।।ऽ । ऽ सहउ सिहितावणं, महउ सुहभावणं । सुदंसणचरिउ 6.10.3 अर्थ - चाहे पंचाग्नि तप करो, सुहावना पूजा-पाठ करो। 17. चारुपद छन्द लक्षण- इसमें दो चरण होते हैं (द्विपदी)। प्रत्येक चरण में दस मात्राएँ होती हैं। अन्त में गुरु (5) व लघु (।) होता है। उदाहरणऽ ।ऽ । ऽ।।।।।।। भो रायराएस, संगहियजससेस । जसहरचरिउ 1.17.3 अर्थ- हे राजेश्वर, आपने समस्त यश संचित किया है। अपभ्रंश अभ्यास सौरभ (11) (छंद एवं अलंकार) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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