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पइस णिवइ पहुसर थुणइ, बहु-भव-भव-कयरय-पडलु धुणइ।
णायकुमारचरिउ 1.11.1-2 अर्थ- (विपुलाचल पर्वत पर पहुँचकर) राजा ने तीर्थंकर के उस समोसरण में प्रवेश किया जहाँ देव, मनुष्य, नाग और विद्याधर विराजमान थे और जो कामदेव के प्रहारों से बचानेवाला था। वहाँ पहुँचकर राजा श्रेणिक ने महावीर प्रभु को स्मरण करते हुए उनकी स्तुति की और उसके द्वारा अपने जन्मजन्मान्तर के कर्मों की धूलि को उन्होंने झाड़ डाला। 4. वदनक छन्द लक्षण- इसमें चार चरण होते हैं (चतुष्पदी)। प्रत्येक चरण में सोलह मात्राएँ होती हैं और चरण के अन्त में दो मात्राएँ लघु (।।) होती हैं। उदाहरणल-ल
ल-ल ऽऽ ।।। 5 । 55 ।। ।। ।। 5 ।। 5 ।। रामे जणणि जं जें आउच्छिय, णिरु णिच्चेयण तक्खणे मुच्छिय। . ल-ल
ल-ल ।।55 ।। ।। ।।5।। । । ।। ।।ऽ ।। चमरुक्खेवेंहि किय पडिवायण, दुक्खु दुक्खु पुणु जाय सचेयण।
पउमचरिउ 23.4.1,3 अर्थ- राम ने जब माँ से इस प्रकार पूछा तो वह तत्काल मूर्च्छित हो गयी। चमर धारण करनेवाली स्त्रियों ने हवा की। बड़ी कठिनाई से वह सचेतन हुई। 5. दोहा छन्द लक्षण - इसमें चार चरण होते हैं (चतुष्पदी)। पहले व तीसरे चरण में तेरहतेरह मात्राएँ होती हैं और दूसरे व चौथे चरण में ग्यारह-ग्यारह मात्राएँ होती हैं।
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अपभ्रंश अभ्यास सौरभ (छंद एवं अलंकार)
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