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उदाहरण5।। ।। ।।।।।।। ।।।।। ।। . जाणमि वणि गुणगणसहिउ, परजुवईहिँ विरत्तु।
।।। ।। ।।।।। ।। ।।। पर महु अंबुलें हियवडउ, णउ चिंतेइ परन्तु।
सुदंसणचरिउ 8.6.1-2 अर्थ- मैं जानती हूँ कि वह वणिग्वर बड़ा गुणवान है और पराई युवतियों से विरक्त है। किन्तु हे माता ! मेरा हृदय और कहीं लगता ही नहीं। 6. चन्द्रलेखा छन्द लक्षण- इसमें दो चरण होते हैं (द्विपदी)। प्रत्येक चरण में 24 मात्राएँ होती हैं व अन्तर्यमक' की योजना होती है। उदाहरण॥ ॥ऽ। । ।। ऽ।ऽ। 55।। वलु वयणेण तेण, सहुँ साहणेण, संचल्लिउ । ऽ। ।ऽ।ऽ। ।।।। ।। ऽ ऽ ।। णाँइ महासमुद्रु, जलयर - रउदु, उत्थल्लिउ॥
पउमचरिउ 40.16.2 अर्थ- इन शब्दों से, राम सेना के साथ वहाँ इस प्रकार चले जैसे जलचरों से रौद्र महासमुद्र ही उछल पड़ा हो।
1. चरण के बीच में तुक मिलने को अन्तर्यमक कहा गया है। जैसे - प्रथम चरण में ते . व साहणेण।
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अपभ्रंश अभ्यास सौरभ (छंद एवं अलंकार
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