Book Title: Anusandhan 2020 02 SrNo 79
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 25
________________ अनुसन्धान-७९ जीव इंदिय गया पूठई विषय चिंत धरइ । देहथी जु गयु इंदिय पुरुष किम समरइ ॥२७॥ वी० ॥ तिम ज सो परिवारि दीख्यो विगत सुणि आयु ।। 'भूत हइ उर नहीं' जाणुं सून्य जग भायो ॥२८॥ वी० ॥ विगत सुण तिं झूठ बुझो भूति जग भरिउ । चंद रवि भू प्रमुख देखइ प्रतखि पातरिउ ॥२९॥ वी० ॥ ढाल ॥ राग गुडी ॥ तिम तिम समकितधर थोडिलउ - ए ढाल ॥ भावि पटोधर वीरनो सामि सुधर्मा मुणिंद । समवसरणि जब आवीउ देखि सुरनर-इंद ॥ भावि० ॥३०॥ वीरजिणिदिं बोलावीउ ए संसय तुझ जोइ । एणि भवे देहिअ जे जस्यो सो परि भवि तिम होइ ॥३१॥ भावि० ॥ काज हुइ कारणसमूं येम जवथी जव होइ । सालिथकी जव किम होइ मुझ ओर न भंति कोइ ॥३२॥ भावि० ॥ प्रभु कहइ बंध छइ जूजूओ कर्मप्रकृति बहु भेद । नारि वली नरपणूं लहइ बहुगति पलटि वेद ॥३३॥ भावि० ॥ इम बूझवि जिनि दीखीउ पंचसयां परिवारि । तब मंडित पणि आवीओ बंधन-मोख्य विचार ॥३४॥ भावि० ॥ प्रभु कहइ हेतु सत्तावने देहिं बाधि रे बंध । न्यानादिक धरी छोडवि मुगति कर्म नही बंध ॥३५॥ भावि० ॥ . प्रतिबोधी प्रभु दीखीओ अऊठ सया स्यूं सोय । मोरीअपूत बोलावीओ तुझ मनि देव न कोइ ॥३६॥ भावि० ॥ रवि विधु बुध ग्रहगण जोउ समवसरणि पणि देव । सो समझावी मुनि कीउ अऊठसयां करि सेवि ॥३७॥ भावि० ॥ नारक-संसय आवीओ तोहि अकंपित कांइ । ते तिहां परवश दुखि पड्या नारक नावि रे जाइ ॥३८॥ भावि० ॥ समझावी व्रत थापीउ तीन सयां स्यूं सोइ ।। पुण्य न पाप संदो(दे)ह तुं अविचलभायो जोइ ॥३९॥ भावि० ॥ सुकुल-स(सु)रूप-धनायुषो पुण्य हुइ नही पापि ।

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