Book Title: Anusandhan 2020 02 SrNo 79
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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जान्युआरी - २०२०
कनककेतु कर जोडी कहइ, त्रिभुवन वात स्वामि तुं लहइ अम्ह जमाई कहउ कुण नाम, माय बाप किहां एहनुं ठाम ॥१२१॥ जे पूछ्युं ते कहीयुं सार, सदाचार श्रीपालकुमार टल्यउ संदेह हरख्यउ मनि भूप, जाण्युं जमाईनुं सवरूप ॥१२२॥ मदनमंजूषा लेई वरमाल, वर वरीयउ कुंअर श्रीपाल कनककेतु तिहां करइ वीवाह, आणी अविचल अंगि उछाह ॥१२३।। चंपापति परण्यउ जेतलई, चैत्रमास आव्यउ तेतलइ नवदिन आंबिलनउ तप तपइ, जिनवर आगलि नवपद जपइ ॥१२४॥ वाहण वस्तु धवल जे धणी, तेने बारइ६२ पडी अति घणी कोपि चड्या दाणी द्यई दाह, वीनवीयउ तेणे नरनाह ॥१२५।। राय भणइ जउ लोपी आण, चोर करी ऊदालउ प्राण कृपावंत कुमर श्रीपाल, वछीआयत म मारिस भूपाल ॥१२६।। सारथपति देवायें मान, वली अधिकेरुं वाल्युं६३ वान वाहणतणी हूई पूरणी, चाल्या मंदिर कुंकण भणी ॥१२७॥ हीरा माणिक मोती तणा, बीजा द्रव्यतणी नही ६४मणा आपी राय संप्रेड्या कुंअर, मोकलावी चाल्यउ वरनयर ॥१२८।।
॥ वीवाहलानी ढाल । वाहण पंचसय पूरीआ, पूरीआढा सवि सिढ६५ रे । स्त्रीयरयण लेई चड्यउ, कुंअर सहजि सनढ रे । गजगति चालइ चमकती, रणकती नेउर पाय रे कदलीदल रा(स)कोमल, जंघ जुअग(ल) तस ठाइ रे ॥ [१२९] नाभि गंभीर कृशोदरी, उर धरी पीन उत्तंग रे दाडिम कु(क)लीय दोतडां, अधर प्रवालडा रंग रे । नयणडे हरण हराविआं, वयणडे चंदलउ जीतउ(जीत) रे वेणी वासिग वाहीयउ कंठइ कोइल गीत रे ॥१३०॥
६२. खोहर ॥ ६४. कामणा ॥ ६६. सनेठइं।
६३. आल्यों दांन । ६५. सेठई रे ।

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