Book Title: Anusandhan 2020 02 SrNo 79
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
View full book text
________________
३४
अनुसन्धान-७९
जइ गंभारइ अरिहंत स्तवइ, कुंअरि कला देखी चीतवइ ॥१०८॥ विद्यारूपि ए ऊघाटि, ए जमली नथी वेताढि हुं आणुं वर एहनइ किसउ, एह जमलि अवर नही विसउ ॥१०९।। प्रणमी ऋषभदेवना पाय, राजा रंगमंडपि तब जाय देवराणी आफणीयई कमाड, बलवंत को न सकइ उघाडि(ड) ॥११०॥ कुमरीनइ मनि चिंता इसी, मइ आसातन कीधी किसी कनककेतु मनि चिंता घणी, मई अभगति कीधी जिनतणी ॥१११॥ अचरिज देखी चिंतइ भूप, एतउ कांइ देव स्वरूप ए परमारथ जउ लीजस्यइ, निश्चय भोजन तउ कीजस्यइ ॥११२॥ परतीअन्न बइठउ भूपाल, गगनवाणी हुई समकालि(ल) एकमना सांभलज्यो सहू, प्रजा प्रजापति जे हुं कहुं ॥११३॥
॥ दूहा ॥ दोस न कोइ कुमारीह, नरवर दोस न कोय जिण कारणि जिणहर जड्युं, ते निसुणउ सहु कोय ॥११४॥ जे नर दीठइ ऊघडइ जिणहर तणा कमाड सो नर मयणमजूसीह होस्यइ ते भरतार ॥११५।। सिरि रिसहेसर ओलगणि, हुं चक्केसरि देवि मास अभ्यंतर सोय नर, निश्चय आविसि लेइ ॥११६।।
॥ चउपई ॥ वाणी अमर सुणी नरनाह, भूमंडलि बिमणउ उच्छाह राजकुमरि रलीयायत हुई, जिणवर सार करइ अम्हतणी ॥११७॥ ६१नही लगइ बहु राणोराणि, जिणहर जोई जोई जाणि मया करीनइ ऊठउ हेव, नयणि निहालउ त्रिभुवन देव ॥११८॥ चढी तुरंगमि पहुतउ भूयणि, जिणहर जडीयुं दीर्छ नयणि झटकइस्युं ऊघडीआ बार, आदीस्वरनइ करइ जुहार ॥११९॥ देवं(वां)गणि बइठउ छइ राय, न्यानी ऋषि आव्यउ तसु ठाय
वंदी पग पहिलं तेहना, सुललित सुणी धरम देसना ॥१२०॥ ६०. परिवारें।
६१. तिहां लगइ बिहु ॥

Page Navigation
1 ... 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110