Book Title: Anusandhan 2020 02 SrNo 79
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 82
________________ जान्युआरी - २०२० ७५ बहुत दवाजइ, विजइसेन छाजइ, रूपां... विद्याविजय नाम, ठवीउ ताम, रूपां... विनआदिक वारू, करि विसारू, रूपां... ग्रंथ अभ्यासि, गुरुनि पासइ, रूपां... अंग इग्यार, उपांग बार, रूपां..., व्याकरण हेम, साहित तेम, रूपां... चंतामणि चारू, परमाण वारू, रूपां..., सकल विचार, लहि हीतकार, रूपां... इम ग्रंथ अनेक, भणां सुववेक, रूपां..., गुरु चीत राखइ, असत्य न भाखि, रूपां... . दूहा संवत सोल पंचावनि (१६५५), माघसर सुदि छठि जोय, पंडितपद आपु तदा, तव हरखुं सहु कोय. तीणइ अवसरि मनि चीतवी, श्रीविजयसेन गणधार, पटि जोगि जोवा भणी, लाडुलि करि वीहार. ॥ चउपइ ॥ श्रीविजइसेनसुरी गणधार, सकल सास्त्र जाण गुरु सार, पंच महाव्रत पालइ चंग, तप कीरीआसुं अधिकउ रंग. साह कमासुत गुणनी लता, वाचक वीबुध सहीत सोहता, लाडउलि नअरि पधारइ गछधणी, सामहीआनी सजाइ घणी. ९७ हय गय रथ सणगारा सहु, सांबाला ते कीधा बहु, कणअ कलस सोहवि सरि धरइ, धज तोरणने आगलथी करइ. ९८ पंचसबद वाजइ नीसांण, सोहवि गीत गाइ सुजाण, कन्या गाय पुरण-घट मल्या, सकल मनोरथ मनना फल्या. ९९ सकुन सार जोई इम लीध, लाडउलिमांहि परवेस ज कीध, संघ सवे आणंद्यउ घj, तेहनी वात हुं केती भणुं. __ १००

Loading...

Page Navigation
1 ... 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110