Book Title: Anusandhan 2020 02 SrNo 79
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 95
________________ ८८ अनुसन्धान-७९ कहि कोलाहल एवडउ किसउ, कुण आवइ गछपती इंहा इसउ, श्रीविजयसेन सासन-सुलतान, जेहनइ भुप दीइ बहुमान. २३३ ते आडंबरि आवइ इसइ, तव कुमती लाजीनइ खसइ, पाटण संघ सदा भावीउ, संखारी साहमउ आवीउ. २३४ गुरु-चरणे पाथरि पाट, ते सवि लेता आवइ भाट, पाटणमांहि परवेस ज करइ, कन्या गउ जमणां उतरि(रइ) २३५ इंम सकुन थाइ अनकुल, साहामां सुगंध मलइ वली फुल मछ-जुगल मदिरा घट भरी, एहवा सकुन सनमुख करी. २३६ एह सकुन पुरइ मन आस, जइ जुहारा नारिंग पास अति आडंबरि पुज्य आवीआ, संघ चतुरविध मनि भावीआ. २३७ उपासरि-पउलीइ पहुत, साधु साधवी साथि छइ बहुत, संघ चतुरविध मलउ मनरंगि, रूपइए पूजइ नव अंगि. २३८ सोना रूपानां जे फुल, मांहि मेला मोती बहुमूल, वधावी वांद्या सुरीराज, तुम्ह भेटि अम्ह सीधां काज. २३९ प्रभावना श्रीफल दीजीए, इंम लछी लाहउ लीजीइ, जे जाचिक तीहां आवीआ, कणय तुरंगम ते पावीआ. २४० इंम अनेक खरचीनि दाम, साहमोणाना कीधां काम, लली लली वंदि सहु नर नार, भलि मला गुरु भव-जल-तार. २४१ गुरुमुख-वाणी अमृत जसी, सहु सांभलवा आवइ धसी, सुणइ देसना दुरीत नीवार, जीवादीक नवतत्व वीचार. २४२ एह संबंध एतलइ हवउ, आगलि. संबंध कहीसइ नवउ, सहु सज्जन सुणज्यो एकचीति, श्रीगुरु उपेर आणी प्रीति. २४३ दूहा श्रीविजइसेन विजइदेवसुरी, बइठा सभा मझार, वीनअ करीनइ वीनवइ, संघ सहु तेणी वार. चंबावती पद थापउं, राखी तेहनी लाज, वांदणा महउछव इहां करी, सारउ अम्हारां काज. २४५ २४४

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