Book Title: Anusandhan 2020 02 SrNo 79
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 102
________________ जान्युआरी - २०२० थाय एने एक अद्भुत जोग-संजोग गणवो पडे!) कवि नवोदित जणाय छे. कवितामां शब्दाडम्बर घणो छ, शब्दो साथे छूट पण लेवाइ छे. कल्पनाउड्डयन निरंकुशपणे थयुं छे. प्रथम स्तव दीप्तिसागरसूरिनी कीर्तिने विषय बनावीने रचायुं छे. श्लोक ३ना बीजा चरणना अन्ते समास तोडी देवायो छे जे काव्यशास्त्रनी दृष्टिए दोष गणाय. श्लो. ११मां 'शॉमिका' शब्द छे, जे अपरिचित / अज्ञात भासे छे. सम्पादके 'रम्योर्मिका' शब्द सूचव्यो छे, किन्तु ह.प्र.मां जो 'शॉमिका' स्पष्ट निःसंदेह वंचातो होय तो तेने साचो मानी ए शब्दनी शोध करवी जोइए. थाळी, रोटली के पूरणपोळी जेवी वस्तु अहीं इंगित थाय छे. श्लो. १३मां 'म(मृ)गेन्दु० छे त्यां म नहि पण भ होवानी पूरी शक्यता छे. भग = सूर्य. मृग कल्पवानी जरूर नथी. 'सूर्य अने चन्द्रना प्रकाशना बहाने त्रण जगतमां जेमनी कीर्ति फेलायेली छे' – एवो अर्थ सुसंगत थाय छे. जो के आगळ न छे, तेनो मेळ बेसतो नथी. बीजा स्तवमां श्लो. ६मां सेवना-क्षण० छे त्यां सेवनां क्षणम० एम वांचवाथी वाक्य पूर्ण बने छे. त्रीजा स्तवमां श्लो. ७ : 'रमानः'. छे त्यां 'रमा नः' एवो पाठ योग्य लागे छे. श्लो. १५ : त्रीजुं चरण आम वांची शकाय : 'विशालवक्षा वृषवत्सदंसः' पांचमो स्तव, श्लोक ५ : 'मुनिप्रतानः' एवो प्रथमान्त शब्द अन्वयनी दृष्टिए बेसतो नथी. आगळना शब्द साथे समास होय तो अर्थसंगति थाय- 'मुनिप्रतान-कोटीरहीर !' चोथा चरणमां 'शम(मा)ग्य०'मां (मा) करवानी जरूर नथी, शम् अव्यय छे ज. 'कल्याणरूपी श्रेष्ठ आम्रवृक्ष पर रमनारा कीर' - एवो अर्थ छे. श्लो. ८ना अन्ते '०मृगात्र पाकैः' पाठ बेसतो नथी. पाकै. सुधी सम्पूर्ण समास होवो जोइए. १०मा श्लोकना अन्ते '०मादैः' छे त्यां ‘पादैः' होवू घटे. आ स्तव अपूर्ण जणाय छे, कारण के श्लोको- कुलक हजी पूरुं थतुं नथी - क्रियापद देखातुं नथी. आथी माणिक्य सुन्दर शब्द कर्ताना नाम तरीके न गणी शकाय. _ 'सागरमत चोपाई'मां तपागच्छमां एक समये जागेला मतभेदनी अधिकृत चर्चा थई छे. एक पक्ष स्याद्वादी - उदार मतवादी जणाय छे, बीजो पक्ष आत्यन्तिक - अन्तिमवादी जणाय छे. रचनाकार उदारमतवादने अनुसरे छे,

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