Book Title: Anusandhan 2020 02 SrNo 79
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 57
________________ अनुसन्धान-७९ नवपद नामइं नव प्रासाद, झलकिं स्वर्गस्युं करता वाद नव सुतस्युं ते पालिं राज, जांणै धर्माधर्म सवे नरराज ॥३०२।। तस कीरति पांमी विस्तार, जांणे चंद्रकला उदार केतकी परि महीमांहि सुवास, तिम राय श्रीपाल तणो जसवास ॥३०३।। जनम लगि जेतो तप तपै, तेतो फल एणि जापें जपै गुणमाहिं जग हुओ सतवंत, तत्त्वमांहिं तिम सिद्धचक्र ज तंत ॥३०४॥ पूरव चौदतणुं ए सार, चिंतामणी एहनो अवतार लक्ष जाप एहनो गुणो, अंतरवयरी सवि अवगुणो ॥३०५॥ नंदो जिहां लगि मेरुगिरंद, रवी मंडल तारा निं चंद मुनिवर ने श्रावक तिहां जपो, दिनकर जिम ए तिहुअण तपो ॥३०६।। पहिलं मंगल सवे अरीहंत, बीजुं सिद्धचक्र जयवंत त्रीगँ विमल देव सुविसाल, चोथं मंगल राय श्रीपाल ॥३०७॥ ॐ ॥ ढाल ॥ चंपापति अति रूअडउ ए मालंतेड(तडे) तूठउ श्री नवकार सुणि(ण)सुंदरि तूठउ श्री नवकार [सु.] नव पटराणी मूलगी ए मा० मयणसुंदरि भरतार ॥३०८।। मयणसुंदरि धन श्राविका ए मा० थापीयउ श्री०४ जिनधर्म सिद्धचक्र आराधीउं[ए] मा० अजूआल्यां जिनधर्म ॥३०९॥ मिथ्यातई भूला भमइ ए [मा०] नवि गमइ जिणवर आण दान सील तप भावना वेगला ए मा० तेहगें किस्युं वखाण ॥३१०|| सुख अनंता भोगवा [ए] मा०, जे पूजइ श्री अरिहंत मयणसुंदरि श्रीपाल ज्यु रे (ए) मा०, ते होवइ गुणवंत ॥३११॥ नायलगछि गुरु गाईयइ ए मा०, श्रीगुणसमुद्रहसूरि तासु पाटि सोहामणा ए मा०, वंदीयइ आणंदपूरि ॥३१२॥ १०४. जिणें । १०५. ज्ञानसागर उवज्झाय ।

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