Book Title: Anusandhan 2020 02 SrNo 79
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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जान्युआरी - २०२०
भट सातसें करि प्रसंस, धन धन राजा नर अवतंस जेहने जेहसुं छे वली वइर, सातसें जइनें वीट्यों नयर ॥२८८॥ लीधां धण कण कंचण दीह, साहमो मिल्यो सिमाडे सींह कां रे आव्या माहरें खेत्र, सातसिं सुभट पाड्या रणखेत्र ॥२८९।। मरी हुआ ते कुष्टी सवे, सिंह मरीने आणे भवें अजितसेन हं थयो ते जांणि, राज हो तुझ बालक त्राणि ॥२९०॥ श्रीकांत मरीनें तूंअज हुओ, सुरूप टलीने कुष्टी थयो ऋषी नांख्यो जे नीर मझार, तिणें कर्मइं तुं पड्यो समुद्र मझार ॥२९॥ डुंब कही जे दुहव्यो साधु, डुंबपणुं तें तेहथी लाध(धु) सिद्धचक्रनें ध्यान प्रमाण, तुझनें सेवसिं रांणोराण ॥२९२॥ आठई सहीअर हुँती जेह, आणे भवें आठ वनीता तेह पहिले भवें राणी श्रीमति, मयणसुंदरी पट्टरांणी माहासती ॥२९३।। नवसें वरस ते आयु प्रमाण, तुं पामीस स्वर्ग विमान सिद्धचक्र भावि प्रतिपाल, नोमि भवि तुं मुगति निहालि(ल) ॥२९४॥ निसुणी परभवतणुं चरित्र, गुरुवचने हुआ पवित्र
आणंदी रोमाच्यो सरीर, गाजि जलहर जिम गंभीर ॥२९५।। हवि उजमणुं आदिल देहरें, एणि ढोणि सवि पातिक हरें बार कलस कनकमय घड्या, अमूलिक हीरे माणिक जड्या ॥२९६।। पहिलिं पदि मंगलेवो ठवो, स्वेतध्यांने अरिहंत तवो एकत्रीस विद्रुमनी मणी, सिद्धस्थानकि मेहलिं धणधणी(घणी) ॥२९७॥ रातुं ध्यान मनमांहिं धरि, भवसायर ते लीलें तर त्रीजुं पद समरो समरथ, जेहनें पूजि टलई अनरथ ॥२९८॥ पीतरत्नस्युं पूजा करें, पीतवर्ण आचार्य मन धरि(रें) चोथई पद मरकत पंचवीस, उवज्झाय उपरि मनह जगीश ॥२९९।। नीखें ध्यान मनमांहै धरै, इम उवज्झायनुं समरण करई पांचमुं पद मनमाहै धरो, साधतणुं ध्यान हविं करो ॥३००॥ अरीष्ट रत्न धरो सतावीस, साधुगुण समरो निसदीस जपीइं पांचे पद नवकार, अनंत सुख लहीइं निरधार ॥३०१॥

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